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महाकवि शानसागर के काम-एक अध्ययन
"समाश्रिता मानवताऽस्तु तेन समाश्रिता मानवतास्तु तेन । पूज्येषथा मानवता बनेन समुत्थसामा नवताऽप्यनेन ॥"
-वीरोदय, १७॥१२ इस श्लोक में प्रथम चरण की मात्ति द्वितीय चरण में की गई है। प्रतः :मुख-यमक' है।' इसी श्लोक के प्रथम चरण का मध्य भाग दूसरे चरणों के मध्य भानों में मावृत्त हुमा है, अतः यह एकवेशज मध्य-यमक भी है।
पुग्म-यमक(क) "पुण्याहवाचनपरा समुदकसारा पुण्याहवाचनपरासमुदकंसारा। पाशासिता सुरमिता नवकोतुकेन बाशासितासुरभितानसकौतुकेन ।" _
-जयोदय, १८१६८ (ख) "सा काममुत्सङ्गातापि तेन सा काममुत्सङ्गकताऽपि तेन । बाञ्छामि वालेऽन्तलतामनोहं वाञ्छामि वालेन्तलतामवोत्रम् ॥"
-जयोदय, १७१२५ उपर्युक्त दोनों इलोकों में प्रथम चरण की भावत्ति द्वितीय चरण में पोर तृतीय चरण की पावृत्ति चतुर्थ चरण में होने के कारण 'युग्म-यमक' है।' पुग्छ यमक
"तमन्यचेतस्कमवेत्य तस्य सङ्कल्पतोऽनन्यमना बयस्पः । समाह सद्य: कपिलक्षणेन समाह सबः कपिलः क्षणेन ।।
-सुदर्शनोदय,
(ख) शिषा विभक्ते पादे प्रथमादिपादाविभागः पूर्ववत् द्वितीयादिपावादि
भागेषु....... ... .. -काव्यप्रकाश, ६ कारिका ८३ के उत्तराध का द्वितीय व्याख्या मान । १. 'पर्यायेणान्येषामावृत्तानां सहादिपादेन। मुखसंबंशावृत्तयः क्रमेण यमकानि . जायन्ते ॥
--रुद्रटात काम्बाकार, २. वही, ३।२० ३. "परिवृत्तिर्नाम भवेवमकं गर्मावृत्तिप्रयोगेण । मुगपुच्छयोश्च योगाद युग्मकमिति पावजं नवमम् ॥"
-रुद्रटकत काम्याबङ्कार, ३१