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________________ महाकवि शानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में मावपक्ष (क) जयोग्य महाकाव्य युद्ध की तैयारी के प्रसंग में अपराग गुणीभूतव्यंग्य का उदाहरण प्रस्तुत "अश्रुनीरमधुना सकज्जलमाक्षे रिपुवधूपयोधरः। दिक्कुलं खलु रजोऽन्वितं तदुत्पातमस्य गमनेऽरयो विदुः ।।" यहां पर प्रथम-पंक्ति में करुण रस की स्पष्ट अभिव्यञ्जना हो रही है किन्तु यह अभिग्यजना वीर रस की अभिव्यञ्जना में सहायक है, इसलिए यहां पर अपराग (गुणीभूत) व्यङ्ग्य काम्य है । (ब) वोरोदय महाकाव्य भगवान् महावीर के प्रसङ्ग में प्रगूढ-गुणीभूत व्यंग्य का उदाहरण देखिए : "प्रतिवृद्धतयेव सन्निधिं समुपागन्तुमशक्यमम्बुषिम् । । अमराः करुणापरायणाः समुपानिन्युरपात्र निघणाः ॥२ यहां यह अभिव्यञ्जना निकलती है कि देवगण समुद्र के जल को सुमेरु पर्वत तक पहुंचा रहे हैं, यह अभिव्यञ्जना इतनी स्पष्ट है कि यहां ध्वनि काम्य बंसा मानन्द नहीं माता, इसलिये गुणीभूत व्यङ्ग्य काव्य है। (ग) सुदर्शनोदय भंग-देश-वर्णन के प्रसङ्ग में प्रसुन्दर गुणीभूत व्यङ्ग्य का उदाहरण प्रस्तुत "परमागमपारगामिना विविता स्यां न कदाचनाऽमुना । स्म दधाति सुपुस्तकं सदा सविशेषाध्ययनाय शारदा ॥3 ... (कहीं परमागम के पारगामी इस सुदर्शन से मैं पराजित न हो जाऊं, यह सोचकर सरस्वती विशेष प्रध्ययन के लिये हाथ में सदैव पुस्तक धारण करती है।) यहाँ पर ध्वनि निकलती है कि सुदर्शन प्रत्यन्त विद्वान् था, उसकी ग्राह्य पंक्ति प्रद्भुत थी। किन्तु यह व्यंग्यार्थ वाच्यार्थ की अपेक्षा सुन्दर नहीं है, अतः यहाँ पर प्रसुन्दरं गुरणीभूतव्यङग्य कान्य है। १. जयोदय, ७१०१ २. वीरोदय, ७२३ ३. सुदर्शनोदय; ३३१
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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