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________________ ३०५ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में मावपक्ष मन में चिन्ता, जड़ता, मति, बुति, विषाद इत्यादि भाव एक साथ ही उचित हो जाते हैं ।' (स) वीरोदय में भावशबलता - जब भगवान् महावीर को अपने पूर्वजन्मों की याद भाती है, तब उनका मन स्मृति, निर्वेद, चिन्ता, विषाद, मति, घृति इत्यादि भावों से भर उठता है ।" भगवान् की दिव्यविभूति से प्रभावित गौतम इन्द्रभूति में तर्क, शङ्का, मति, पति, भक्ति इत्यादि भावों की प्रभिव्यञ्जना एक साथ दृष्टिगोचर होती है । 3 (ग) सुदर्शनोदय में भावशबलता - सुदर्शन को देखकर कपिला ब्राह्मणी, मोह, व्यग्रता, प्रोत्सुक्य, चञ्चलता इत्यादि कई भावों की शिकार हो जाती है। कपिला के वचनों से प्रभावित रानी मयमती के मन में व्यग्रता, प्रोत्सुक्य, प्रमषं, चिन्ता, चपलता, स्मृति इत्यादि भाव उदित हो जाते हैं। रानी प्रभयमती के दुराचरण से सुदर्शन के मन में निर्वेद, ग्लानि, मति, तर्क इत्यादि भाव उदित हो जाते हैं। (च) बीसमुद्रदत्तचरित्र में भावशबलता राजा चक्रायुध जब दर्पण में मुंह देखते समय अपने शिर में एक सफेद बाल देखता है, तब उसके मन में निर्वेद, तर्क, मति, घृति, चिन्ता भादि भावों का उदय हो जाता है । (5) बयोदयचम्पू में भावशबलता मुनि के वचनों को सुनकर मृगसेन के मन में तर्क, निर्वेद, मति इत्यादि भावों का उदय एक साथ हुआ है ।" मृबसेन की प्रतीक्षा करते हुए धीवरी के मन मैं चिन्ता, तर्क, शङ्का, चम्चलता इत्यादि भावों का प्रावागमन होने लगता है ।" घण्टा धीवरी के द्वारा घर से बाहर निकाल दिये जाने पर मृगसेन के मन में निर्वेद १. जयोदय, ११-८ २. बीरोदय, ११।३७-४४ ३. वही, १३।२५-३१ ४. सुदर्शनोदय, ५।१-१५ ५. वही, ६।१७-१ε ६. वही, ७।२२-२९ ७. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ७।२-२१ 5. eater म्पू: १। श्लोक १४ के बाद का गद्यभाग | 6. वही, १। श्लोक ६ के पूर्व के गद्यभाग से श्लोक ७ के बाद के गद्यभाग तक ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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