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________________ ३०४ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य --एक अध्ययन निर्वेद और मोह नामक भाव साथ-साथ आ जाते हैं ।' मुनि को दयनीय दशा देखकर ग्वाले के पुत्र में विना और विषाद नामक भाव साथ-साथ देखने को मिलते हैं।' रानी अभयमती के ऊपर दासी के वचनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, इस समय रानी के मोह और उग्रता नामक संचारी भाव एक साथ अभिव्यजित होते हैं । (घ) श्रीसमुद्रदत्तचरित्र में भावसन्धि-- प्रियङगुश्री को पाने में असमर्थ वज्रसेन के हृदय में निर्वेद और रोष नामक माव साथ ही उत्पन्न होते हैं । (ङ) दयोदयचम्पू में भावसन्धि साधु के चरणों में प्रतिज्ञा करते हुए मगसेन के मति और धति नामक भावों को साथ ही अभिव्य जना होती है । ५ मगसेन की प्रतीक्षा में रत धीवरी जब मगसेन को प्राता हुप्रा देखती है तो उसके हर्ष प्रौर प्रोत्सुक्य नामक भाव साथसाथ अभिव्यजित होते हैं । ' सोमदत्त को मारने में सतत प्रयत्नशील गणपाल के तकं मोर अमर्ष नामक भाव अभिव्यजित होते हैं।" (ध) भावशबलता का स्वरूप जहाँ एक ही स्थल पर कई भाव साथ-साथ पा जाते हैं, वहां भावशबनता होती है । (न) कवि श्रीज्ञानसागर के संस्कृत काव्यों में भावशबलता कविवर ज्ञानसागर के पांचों काव्यों में से भावशबलता के उदाहरण प्रस्तुत हैं(क) जयोदय में भावशबलता. : जयकुमार के विजयी होने पर भी महाराज मकम्पन प्रसन्न नहीं होते । उनके १. सुदर्शनोदय, ४।१५ २. वही, ४१३५ ३. वही, ६।२५ ४. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, २।३० ५. दयोदयचम्पू, उलोक के बाद का कपन । ६. वही, पृ० सं० २३ ७. वही, पु० सं०६६ ८. (क) काव्यप्रकाश, ४१३६ का उत्तरार्ष, (ब) साहित्यदर्पण, ३१२६७
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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