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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत प्रत्थों में मावपक्ष
(ङ) दयोदयचम्पू में भावोदयदयोदयचम्पू में मृगसेन
कौतुक में प्रोत्सुक्यभाव का, ७ घण्टा के व्यवहार में क्रोध नामक स्थायिभाव का गुणपाल के चिन्तन में विस्मय नामक स्थायिभाव का, विषा के मनोभावों में हर्ष नामक संचारिभाव का एवं नागरिकों के मनोभावों में विस्मय नामक स्थायिभाव का उदय हुआ है ।
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(थ) भावसन्धि का स्वरूप
जहाँ दो भाव परस्पर मित्र के समान काव्य में भाते हैं, वहीं भावसन्धि होती है । १२
(द) कवि श्रीज्ञानसागर के काव्यों में भावसन्धि
कवि श्री ज्ञानसागर के पांचों काव्यों में मिलने वाले भावसन्धि के उदाहरण प्रस्तुत हैं
(क) जयोदय में भावसन्धि
सुलोचना जब जयकुमार के गले में जयमाला डालती है, वहीं हर्ष एवं लज्जा नामक दो भावों की सन्धि है । 13 जयकुमार मोर सुलोचना का विवाह निश्चित होने पर अन्य राजाभों के मन में चिन्ता प्रोर वैवर्ण्य भाव साथ-साथ उठते हैं । '
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(ख) वीरोदय में भावसन्धि
संसार की दशा पर चिन्तन होते हुए महावीर को अपने पूर्वजन्मों का स्मरण हो जाता है; मोर वह निर्विण्ण हो जाते हैं। प्रतः यहाँ पर स्मृति और निवेद नामक दो भावों की सन्धि है । इसके पश्चात् भी उनके मन में स्मृति धोर तर्क, दोनों भाव, साथ-साथ उठते हैं।
(ग) सुवशं गोदय में भावसन्धि
सुदर्शन जब अपने पिता को संन्यास लेते देखता है, तो उसके मन में
१. दबोदयचम्पू, १२२
२. बही, २। श्लोक २२ के बाद का गद्यभाग ।
३. बही, ३। प्रथम भाग ।
४. बही, ४। श्लोक १४ के पूर्व के मद्यभाग |
बही, ६| इलोक १० के पूर्व के नाभाग । (क) काव्यकाश, ४१३६ का उत्तरार्धं । ७. बीरोदय, २०१३८
ब. वही, ११।१