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________________ ३०२ (क) जयोदय में भावोदय - सेवक के वचनों को सुनकर प्रकंकीति में क्रोधनामक स्थाविभाव एवं उग्रतानामक व्यभिचारिभाव का उदय हुआ है। इसी प्रकार मगर द्वारा प्राक्रान्त होने पर जयकुमार में दन्य नामक भाव की अभिव्यक्ति हुई है। 2 (ख) वीरोदय में भावोदय - वीरोदय में भावोदय के दो उदाहरण हैं । भगवान् महावीर जब पूर्वजन्मों का ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो स्मृति नामक भाव का उदय माना जा सकता है । 3 गौतम इन्द्रभूति के मन में भगवान् को दिव्यविभूति को देखकर विस्मय भाव का उदय होता है । ४ ( सुदर्शनोदय में माबोदय महाकवि शामसागर के काव्य - एक अध्ययन ५ सुदर्शनोदय में स्वप्नों को सुनकर सेठ के मन में हर्ष एवं विस्मय की भिव्यक्ति, पुत्रोत्पत्ति पर हषं की अभिव्यक्ति, मनोरमा सुदर्शन के परस्पर दृष्टि व्यवहार में प्रोत्सुक्य की अभिव्यक्ति, पिता के संन्यास से सुदर्शन के मन में निर्वेद की अभिव्यक्ति निष्फल प्रभयमती में जड़ता की अभिव्यक्ति, ७ О रानी बोर राजा के व्यवहार के पश्चात् सुदर्शन में निर्वेद की अभिव्यक्ति एवं सुदर्शन के वचनों से देवदत्ता में भक्तिभाव की प्रभिव्यक्ति भावोदय के उत्कृष्ट उदाहरण हैं । (घ) श्रीसमुद्रदत्तचरित्र में भावोदय - इस काव्य में उस स्थल पर विस्मय नामक भाव उदित हुआ है, जहाँ महाकच्छ राजा ऐरावण के वैभवपूर्ण नगर को देखना है । १२ १. जयोदय, ७।१७ २. बही, २०५१ ३. बीरोदय, १० ३८ ४. वही, १३।२५-२७ ५. वही, २।२१ ६. वही, ३१४ ७. वही, २।३४-३५ ८. बही, ४११५ ९. वही, ७।३०-३१ १०. बही, ८२०-२१ ११. वही, ६।३० १२. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, २।१६
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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