SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन स्वामिस्त्वय्यपराद्धमेवमिह यन्मोढयान्मया साम्प्रतं मन्तव्यं तदहो पुनीत भवता देयं च सूक्तामतम् ॥"' (सुदर्शन को पढ़ता से प्रभावित होकर देवदत्ता ने उनकी स्तुति की। तत्पश्चात् दयालु और शान्त सुदर्शन के चरणों पर गिरकर, उनके गुणों के प्रति प्रादरभाव धारण करने वाली, अपने दुष्कृत्यों की निन्दा करते हुए देवदत्ता ने कहा-हे स्वामिन् ! प्रज्ञानवश जो मैंने प्रापके प्रति अपराध किया है, उसे क्षमा कर दीजिये । हे पवित्र आत्मा वाले ! मुझे उपदेशरूप वचनामत दीजिए ।) इस श्लोक में एक वेश्या में अपने स्वभाव के विरुद्ध ग्लानि, वियोष, मति, विषाद, शम (निर्वेद) प्रादि भाव दिखाई दे रहे हैं, प्रतएव उन्हें भावाभास कहा जा सकता है। दूसर. उदाहरण श्रीसमुद्र दत्तचरित्र से है । इस स्थल पर रामदत्ता अपने ही पुत्र सिंहचन्द्र की वन्दना करती है, जो उचित भाव नहीं है। प्रतः इसे भक्तिभावाभास हो कहा जा सकता है। तीसरा उदाहरण दयोदयचम्पू से है । मगसेन धीवर अपनी प्राखेट की प्रवृत्ति को छोड़कर मोक्षमार्ग की ओर उन्मुख होने लगता है । उसको यह चेष्टा भी भावाभास के अन्तर्गत प्राएगी। (ङ) भावशक्ति का स्वरूप हमारे हृदय में अनेक भाव सुषुप्तावस्था में रहते हैं। कुछ विशेष स्थितियों में ये जागरित होते हैं मोर कुछ विशेष कारणों से ये पुन: शान्त हो जाते हैं । हृदय में उठते हुए इन भावों के तिरोहित हो जाने को भावशान्ति कहते हैं ।४ (द) कवि श्रीज्ञानसागर के संस्कृत-काव्यों में भावशान्ति महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्यों में एक दो उदाहरण भावशान्ति के भी दृष्टिगोचर होते हैं १. सुदर्शनोदय, ६।३१ २. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ४।१६-२१ ३. दयोदयचम्पू, २॥ श्लोक ८ से श्लोक १३ के पहले के गद्य भाग तक । ४. (क) काव्यप्रकाश, ४।३६ का उत्तराध । (ख) साहित्यदर्पण, ३२६७
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy