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________________ महाकवि मानसागर के संस्कृत-प्रज्यों में मावपक्ष २६९ सोमदत्त भोर विषा का समाचार जामकर मुणपाल की चिन्ता,' गुणश्री को व्याकुलता में शङ्का, महाबल की मृत्यु के पश्चात् सोमदत्त का निर्वेद और मुरणपाल के व्यवहार में (जब सोमपत्त के जामाता होने पर भी वह उसको मारना चाहता है) अमर्ष सम्यक् रीति से अभिव्यजित हुआ है। अपरिपुष्ट स्थायिमाव सोमदत्त के गले में बंधे पत्र को पढ़कर वसन्तसेना के मन में जो भाव जागरित होता है, वह पौत्सुक्य है। सोमदत्त की मधुर माकृति से उसके मन में जो स्नेह जागरित होता है, वह रति है। किन्तु ये सभी स्थायिभाव उन स्थलों पर पूर्णरूपेण परिपुष्ट नहीं हो सके हैं । प्रतः इन स्थलों पर रसकाव्य न होकर भावकाम्य ही रह गया है। (ट) भावाभास का स्वरूपं जब भावों की एकपक्षीय अथवा भनौचित्यपूर्ण अभिव्यक्ति होती है तो वह भावाभास कहलाती है। कुछ भावों को सम्भावना नियत प्राश्रयों में होती है किन्तु जब ये भाव अनियत पाश्रयों में दृष्टिगोचर होते हैं तो भावाभास के रूप में बदल जाते हैं। (8) कवि श्रीज्ञानसागर के संस्कृत-काव्यों में भावाभास कविवर ज्ञानसागर के काव्यों में भावाभास के केवल तीन उदाहरण मिलते है । पहना उदाहरण सुदर्शनोदय का है "इत्येवं पदयोर्दयोदयवतो ननं पतित्वाऽथ सा ___ सम्प्राहाऽऽदरिणी गुणेषु शमिनस्त्वात्मीयनिन्दादशा। १. दयोदय चम्भू, । प्रारम्भिक गयभाग। २. वही, ५॥ श्लोक १४ के बाद के संवाद में । ३. वही, शन्तिम गवभाग। ४. वही, ६॥ श्लोक २ के पहले का गबभाग। ५. वही, ४१२ ६. वही, ४॥ श्लोक ११ के पहले के गवमाग से (श्लोक १३ के पहले के गर भान तक। ७. वही, शश्लोक १४ के बाद तीसरा गवभाग । ८. (३) काव्यप्रकाश, ११३६वीं कारिका के पूर्वार्ष का अर्थाश । (ख) साहित्यदर्पण, ३१२६२ का उत्तरार्ष।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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