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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन विवाह ऐरावण से करने के लिए उसके साथ पा रहा था । मार्ग में बज सेन नामक व्यक्ति ने उसका पीछा किया। उसकी यह चेष्टा अनुचित है, अत: शङ्गार रसाभास का उदाहरण मानी जा सकती है।' वनसेन का ऊपरी मन से जिनदीक्षा ग्रहण करके तप करना शान्त रसाभास का उदाहरण है। (घ) योदयचम्पू में रसामास
___दयोदयचम्पू में केवल शान्तरसाभास का ही वर्णन मिलता है मोर वह भी एक ही स्थल पर। वसन्तसेना वेश्या सोमदत्त के प्रावरण से प्रभावित होकर मार्यिकाव्रत धारण कर लेती है :
"वसन्तसेना वेश्यापि-तत्र वसन्तमपि x x x x साधुशिरोमरिण दृष्ट्वा कौतुकविहीनत्वमात्मनेऽनुमन्यमाना च तत्कवित्वमधिकुर्वाणेव सुवृत्तभावं सम्पादयितुमुद्यताऽभूत् । + + + विषा-वसन्तसेने-एकमेव शाटकमात्र विशेषमायवतमङ्गीचक्रतुः ।।"3
एक वेश्या के हृदय में शम भाव का जागरित होकर पुष्ट होना शान्तरसाभास का उदाहरण माना जा सकता है "शान्ते च होननिष्ठे", साहित्यदर्पण, ३।२६५) ।
(झ) भाव का स्वरूप भारतीय साहित्यशास्त्रियों के अनुसार प्रधान रूप से व्यजित व्यभिचारि. भाव, देव, गुरु प्रौर राजा के प्रति रतिभाव और अपरिपुष्ट स्थायिभाव 'भाव' नाम से जाने जाते हैं। जहां इस प्रकार के भावों का वर्णन होता है, उसे भावकाव्य कहा जाता है । अब देखना यह है कि हमारे मालोज्य महाकवि ने भावकाव्य का कंसा वर्णन किया है।
(ब) कवि श्री ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्यों में भाव (क) अयोदय महाकाव्य में भाव
जयोदय महाकाव्य में सबसे अधिक अभिव्यञ्जना देवविषयक भक्तिभाव १. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, २।२८ । २. वही, २०३० ३. बयोदयचम्पू, ७।१४८-१४६ ४. (क) रतिर्देवादिविषया व्यभिचारी तथाऽञ्जितः । भावः प्रोक्तः ।'
-काम्यप्रकाश, ४१३५ मोर ३६ का एक भाग । (ख) सञ्चारिणः प्रधानानि देवादिविषया रतिः । ___ उबुखमात्रः स्थायी च भाव इत्यभिधीयते ॥
-साहित्यदर्पण, ३२६० का उत्तरार्ध पौर २६१ का पर्षि ।