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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-प्रन्यों में भावपक्ष
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बजार रसामास--
सुदर्शनोदय में शङ्गार रसाभास के पांच उदाहरण हैं। कपिला ब्राह्मणी का सदर्शन पर बाकर्षण प्रथम उदाहरण है, क्योंकि उसका प्रेम एकाङ्गी है।' इसी प्रकार रानी पभयमती का सुदर्शन के प्रति प्रेम दूसरा मोर उनके द्वारा की गई कामुक चेष्टाएं शृङ्गार रसाभास का तृतीय उदाहरण है। शृङ्गाररसाभास का चतुर्ष उदाहरण है-देवदत्ता वेश्या सुदर्शना के प्रति कहे गए कामुक वचन' पोर सदर्शन के वचनों का कोई प्रभाव न पड़ना तथा देवदत्ता का पुनः कामचेष्टाएं करना शुङ्गाराभास का पांचवा उदाहरण है। रोज रसामास
सुदर्शनोदय में रौद्र रसाभास का भी एक उदाहरण मिलता है। रानी अभयमती मरकर व्यन्तरी हो गई है । सुदर्शन को देखकर उसका क्रोध भएक उठता है, और वह सुदर्शन से कटु वचन कहती है :
"रे दुष्टाऽभयमत्यास्यां विद्धि मां नृपयोषितम् । यस्याः साधारणीवाञ्छा पूरिता न त्वया स्मयात् ॥ पश्य मां देवताभूयरूपान्तूपासिकाधिप । त्वमिमां शोचनीयास्थामाप्तो नष्ठ्यंयोगतः ।। कस्यापि प्रार्थनां कश्चिरित्येवमबहेलयेत् । मनुष्यतामवाप्तश्चेषा त्वं जगतीतले ॥ हेतान्त्रिक तदा तु त्वं कृतवान् भूपमात्मसात् ।
तदाब का दशा ते स्यान्मदीयकरयोगतः ॥""
यहां सुदर्शन मुनि के प्रति किया गया क्रोध अनुचित है, क्योंकि सज्जन के प्रति कोष में अनौचित्य नहीं तो और क्या ? इसलिए यह स्थल भी रसाभास की श्रेणी में पा जाता है। (ग) बीसमुद्ररत्तचरित्र में रसामास
इस काव्य में एक स्थल पर शृङ्गार रसाभास की और एक स्पन पर मान्त रसाभास को हल्की झलक मिलती है। महाकन्छ अपनी पुत्री प्रियजनी का
१. सबनोदय, ५-१-५ मोर १४-१७ २. वही, ६।१७-१९ 1. वही, १७-२१ ४. बही, ९।१४.१९ ५. वही, ६२७-२८ 1. बही, ९७८-२१