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महाकवि ज्ञानसागर के काग्य-एक अध्ययन (क) जयोदय में रसामासशङ्गार रसामास--
जयोदय महाकाव्य का वह स्थल शङ्गाररसाभास का उदाहरण है, जहाँ रविप्रभ नामक देव अपनी काञ्चना नाम की पत्नी को जयकमार के पास भेजता है । काञ्चना अपनी काल्पनिक जीवन-कहानी सुनाकर पोर तरह-तरह की पेरामों से जयकुमार को प्राकर्षित करना चाहती है, किन्तु उसका प्रयास निष्फल हो जाता है। भयानक रसाभास
जयोदय महाकाव्य में भगनक रसाभास का उदाहरण वह है, जहां पर मगर के द्वारा हाथी के ऊपर प्राक्रमण होने से जयकुमार घबरा जाते हैं। काम्य के धीरोदात्त एवं युखवीर नायक के मन में मगर को देखकर भय नामक स्थाषिभाव का प्रादुर्भाव होकर उसका पुष्ट होना अनुचित है। (ब) सुदर्शनोदय में रसामासशान्त रसामास
सुदर्शनोदय में शान्त रसाभास के दो उदाहरण मिलते हैं :
(क) शान्त रसाभास का प्रथम उदाहरण वह स्थल है, जिसमें एक रजको के क्षुल्लिका हो जाने का वर्णन है ।'
(क) शान्त रसाभास का दूसरा उदाहरण वह स्थल है, जिसमें सुबर्शन के उपदेश से देवदत्ता वेश्या पोर पण्डिता दासी प्रायिका-व्रत धारण कर लेती
"इत्येवं वचनेन मार्दवतामोहोऽस्तभावं गतः,
यद्गारुडिनः समन्त्रवशतः सर्पस्य दो हतः, मास्विं सममेति पण्यललना दासीसमेतान्वितः
स्वर्णत्वं रसयोगतोऽत्र लभते लोहस्य लेखा यतः ।।"४ उपर्य क्त दोनों उदाहरणों में घोविन, वेश्या मोर दासी को शान्त रस का प्राय बना दिया है, जो अनुचित है, क्योंकि नीचपात्रगत निर को दणकार ने अनुचित बताया है । प्रतः यहाँ शान्त रसाभास है । (ब) 'अनौचित्यप्रवृत्तत्व प्राभासो रसभावयोः ।'
-साहित्यदर्पण, ३१२६२ का उत्तरार्ष । १. योदय, २४।१०५-१३९ २. वही, २०१५१-५२ ३. सुदर्शनोदय, ४।२८-३६ ४. वही, ६७४ १. साहित्यदर्पण, ०२६५