SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८२ महाकवि भानसागर के काव्य-एक अध्ययन बायगी, जैसे सूर्य के विना पाकाश की सत्ता अन्धकार से परिपूर्ण हो जाती है। माता ने कहा, हे बुद्धिमान पुत्र | मझे कमल से रहित सरसी के समान दीन बनाकर यह तुमारे जाने का विचार क्या उचित है ?) . (स) श्रीसमुद्रदत्तचरित्र में वत्सल रस का दूसरा उदाहरण वह स्थल है, यहां पर पक्रायुध का जन्म पोर बालक्रीड़ायें वर्णित हैं।' योग्यचम्पू में वरित प्रङ्ग रस त्योदय में शृङ्गार, करुण पोर वत्सल रसों को प्रङ्गरस के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इनमें से शृङ्गार पोर करुण शान्त रस के पोषक होने के कारण उसके मङ्ग हैं मोर वत्सल रस मप्रधान होने के कारण शान्त के प्रति अङ्गता को धारण करता है। तीनों रस सोदाहरण प्रस्तुत हैं :शुङ्गार रस दयोदयचम्पू में शृङ्गार रस का वर्णन तीन स्थानों पर हुमा है। यहां पर इसके दो उदाहरण प्रस्तुत हैं : (क) सोमदत्त गुणपाल सेठ का पत्र लेकर उसके घर पहुँचता है, उस समय उसके माकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर गुणपाल की पुत्री विषा के हृदय में रतिभाव का उदय होता है : "यदीक्षणमात्रेणेव विषा विषावप्रतियोगिनं भावमङ्गीकुर्वाणा किलेस्पं विचचार स्वमनसि, x x x कोऽसो श्रीमान् यः खलु पूर्वपरिचित इव मम चेतःस्थानमनुगाति । अनङ्गसमवायोऽपि सदङ्गसमवायवान् । निर्दोषतामुपेतोऽपि दोषाकरसमद्युतिः ।। बहुलोहोचितस्थानोऽपि सुवर्णपरिस्थितिः । सञ्चरत्नपि मच्चित्ते स्थितिमेति महाशयः ॥ नाश्विनेयो द्वितीयत्वान्नेन्द्रोऽवरश्रवस्त्वतः । यरूपतया कामोऽपि कथं भवतादयम् ॥२ ___ यहां पर शुङ्गार रस का माश्रय विषा है। सोमदत्त मालम्बन विभाव है। उसका सुन्दर व्यक्तित्व उद्दीपन विभाव हैं। सस्नेह दृष्टिपात इत्यादि अनुभाव है। हर्ष, प्रोत्सुक्य, मति, तर्क इत्यादि व्यभिचारिभाव हैं। (ब) शृङ्गार रस का वर्णन वहां भी देखने को मिलता है, जहाँ राजा सोमबत से अपनी पुत्री का पाणिग्रहण करने का निवेदन करते हैं। सोमबत्त मौर राषकुमारी गुणमाला दोनों ही एक दूसरे के प्रति माकर्षित हो जाते हैं :१. श्रीसमुद्रदत्तपरित्र, ६१४१६ २. पयोदयबम्पू, ४ श्लोक १४ से पूर्व का गब माग एवं १४-१६ श्लोक ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy