________________
महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में भावपक्ष
"राजकुमारी प्रसाधारणसौन्दर्य शालिनं तं दृष्ट्वाकामोऽस्त्यसौ किमुत मे हृदयं विवेश सम्मोहनाय किमिहागत एष शेषः । पासणलोऽयमयवा मदुसन्निवेशश्चन्द्रो हवातरदहो मम सम्मुदे सः ॥ इति संजातसंकल्पा निजीयलोचनावलोकनसन्ततिविशाला सुलमितकुसुममाला भद्रं दिशतु भगवानिति मृदुलालापाधिकालो मोचयामास सोमदत्तगलकन्दले । सोमदत्तोऽपि तामविकलसकलावयवतया सद्गुणसम्पन्नजीवनदुकूलतया च समस्तनारी निकरोत्तमाङ्गमण्डनरूपामसाधारणरूपप्रशस्तिस्तूपामुवीक्ष्य विचारयतिकिम्भोगिनीयमनुयाति शंव मोहं
कि किन्नरी खलु ययास्मि वशीकृतोऽहम् । किंवा रतिः परिकरोति किलानुरागं
श्रोरेव भूषयति या मम वामभागम् ॥
X
.
X
इत्येवं मत्वा x x x सम्फुल्लाननतामाप ।'
इस स्थल पर राजकुमारी और सोमदत्त शङ्गार रस के परस्पर मालम्बन पौर मामय हैं। उनका रूप-सौन्दर्थ, विवाह-प्रबन्ध इत्यादि उद्दीपन है। सस्नेह वीक्षण; गले में जयमाला गलना, रोमाञ्च तथा कर्तव्याकर्तव्य का ज्ञान न हो पाना इत्यादि मनुभाव हैं । हर्ष, प्रोत्सुक्य, गर्व इत्यादि व्यभिचारिभाव हैं । कारण रस
क्योदयचम्पू में करुण रस का वर्णन तीन स्थलों पर मिलता है, जिनमें से बोस्पन उदाहरण के रूप में प्रस्तुत हैं ।
(क) करुण रस की एक झलक हमें गुणपाल के पुत्र महाबल की अकाल मुत्यु के समय देखने को मिलती है :
"मन्विष्यतामपि तु गत्वेति यावज्जगाव तावदेवानुसन्धानकररागत्य निवेदितं यस्किल धेष्ठिकमारो महाबल एव स समस्ति, इत्येवं श्रुत्वाऽतीव. विषम्वदना जाता। विषा-कृतोऽस्त्यहो मम सहोदरो आता कथमस्तु तेन बिनाऽभुना
.. योदय चम्पू ७.श्लोक २३ के पूर्व के गबभाग से लोक २५ के बवमान