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________________ महाकवि ज्ञानसागर के सह-प २६९ बस्सल-एस का द्वितीय स्थल वह है, जहां सुलोचना की विदा हो रही "म बम्नपि काशिकापतिर्वसतुर्मुखमो महामतिः । शिरसि स्फुटममताम्बरी दुपकुर्वन्नयनोदर्कः पक्षी ॥ नगरी व गरीब विनिर्गममेरीविश्वस्य वम्मतः । rent tent fruits: सुमेव तदाशु बुभुभे ।। པ་ समये नम एतचातुरं न नियगविसर्जने परम् । ललना मन एrence तब निर्योग विसर्जने परम् । meet naatfor freeसी व्यवहारी व्यबहार एवं भोः ॥ वि याहि च पूज्यपूजया स्वयमस्थानपि च प्रकाशय । जनमतलाते हम वो जितान् ॥ "" यहाँ सुलोचना के माता पिता, बस्लम एस के प्राश्रय है। सुलोचना मालम्बन विभाग है। उसका पतिगृहनगर उद्दीपनविभाव है । सस्नेह रष्टिपात, रोमा, पाना, स्वरभङ्ग इत्यादि अनुभाव है। हर्ष, विवाद, भावेन, मोह इत्यादि व्यभिचारिभाव है । (ग) जयोश्य महाकाव्य में पस्लल दस का तुसीय उदाहरण वह स्थल है, जहाँ पर जयकुमार सम्राट् भरत से मिलने जाते है : "कल्पबहिलदलयोः श्रितं तयोः सद्योजानफनोपलम्भयोः । पाणियुग्ममनि पहिलो जयसमुनिरोऽभ्युपानयत् ।। उपलम्भितमित्ययोपकतु हृदयेनाभ्युदयेन नाम भर्तुः । उपपदिवोदय भूभूतस्तटे तच्छशिविभ्वं जयदेववक्रमेतत् ॥ हस्तावलम्बनबलेन किलोपलभ्य प्रागालिलिङ्ग गलतः प्रणतं ससभ्यः । सर्वस्वमूपमिति तुल्यतया निजस्य कुच्छ्रितं लघुमपीह जनः प्रशस्थः ॥ हृषितेऽवनियतावभावाद्वाम्पवागमनतोऽत्र तथा वा । धामनोपकरणव्यपदेश दुल्लवास सहसावनिरेषा | तदासमं तत्र तथा समम्वाश्रितं श्रितस्फीतिजयस्य तम्या । शापि संस्पर्द्धन संस्पृणापि श्रीपादपीठं महनीयमापि ॥ मरीविनिवृत्येतरतः जयमुखकमले तिष्ठत्क्रमत: । रसितुमतिथिसत्करण फलम्यावपक्षिणी च नृपतेरविलम्बात् ॥ नयनतारक मेsयुपकारक सुहृद प्राग्रज वैरिनिवारक । " स्वजन सज्जनयो. परिचारक चिरात् प्राव्रजसि क्व शयानकः ।।' १. जयोदय, १३।२-३, ६-१० २. बही, २०१३-१६
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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