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महाकविज्ञानसागर के काम्प-एक अध्ययन
हास्य शान्त का प्रङ्ग
__जयोदय महाकाव्य में वर्णित हास्य रस, इसमें गणित शङ्गार रस का मङ्ग है, और शङ्गार रस शान्त का। प्रतः हम हास्य को शाम्त का मज रस उसी प्रकार मान सकते हैं जैसे शरीर का एक प्रङ्ग हाथ है, और उंगलियाँ हाप का मङ्ग । इस प्रकार हास्यरस इस काव्य में वर्णित शुमार को पूरा करता है, मज़ार शान्त का पोषक है, हास्स भी शृङ्गार के साथ हो शान्त का पोषक होने के कारण उसका मन है। बीमत्स रस
जयोदय महाकाव्य में बीभत्स रस की अभिव्यञ्जना कराने वाला केवल एक स्थल है, वह भी बहुत छोटा है। जयकुमार मोर प्रकीति के बीच में होने वाले युद्ध में, जहां गिद्ध शवों का मांस निकालकर खा रहे हैं, वीभत्स रस की प्रभिपञ्जना हो रही है :
"चराश्च फूत्कारपराः शवानां प्राणा इवाभूः परितः प्रतानाः । पित्सन्सपक्षाः पिशिताशनायायान्तस्तदानीं समरोवरायाम् ॥"
बयोदय महाकाव्य में वत्सल रस का वर्णन चार स्थलों पर मिलता है। इनमें से तीन स्थल प्रस्तुत हैं :
(क) वत्सल रस की झलक हमें सर्वप्रथम वहाँ पर देखने को मिलती है, वहाँ जयकुमार विजयी होकर लौटते हैं। तब महाराज प्रकम्पन ने अपनी पुषी सुलोचना को वात्सल्यपूर्ण दृष्टि से व्रत की पारणा करने का मादेश दिया :
"ईशं संगरसंचिताबहतये सम्यक्समावराव, पुत्रीं प्रेक्षितवान् पुनम दुरशा काशीविशामीश्वरः । पाहारेण विना विनायकपरप्रान्तस्थितो भक्तितो जल्पन्तीमपराजितं हृदि मुदा मन्त्र मुषान्तापंतः। वीराणां वरदेव एव वरदे नेता विजेतानवद श्री पहच्चरणारविन्दापयामीन वातं तव। - मौनं मुन मनीषिमानिनि मुषा सामारममत्तमान
तामित्थं समुदी धाम मतवान् सातवासम्पनः ।"
यहाँ पर सुलोचना वत्सल रस का मालम्बन है। बुनोचना बारा किए गए व्रत, पूजा इत्यादि का उद्दीपन विभाव। सस्नेह सात इत्यादिबनुभाव है। हर्ष, गवं इत्यादि भिवारिमाव है।
१. जयोग्य, ८४. २. वही, ८1८७-६०