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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक अध्ययन (क) शान्तरस का प्रास्वादन सर्वप्रथम सहृदय पाठक वहाँ पर करता है, जहाँ सेठ वृषभदास मुनि से धर्मोपदेश सुनकर दिगम्बर- दीक्षा लेकर मुनि बन जाते हैं और समस्त बाह्य भाडम्बरों का परित्याग कर देते हैं : २५६ | 'वामेव कौमुदी साधु-सुधांशोरमृतलवा । तथा वृषभदासस्याभूम्मोह तिमिरक्षतिः ।। तमाश्विनं मेषहरं श्रितस्तदाधिपोऽपि दासो वृषभस्य सम्पदाम् । मरवम्मोनपदाय भन्दतां जगाम दृष्ट्वा जगतोऽप्यकन्दताम् ॥' (ब) शान्त रस की प्रभिव्यजना कराने वाला दूसरा स्थल वह है, जहाँ रानी के दुर्व्यबहार के पश्चात् अपनी तेजस्विता मोर शक्ति के कारण सुदर्शन राजा धात्री वाहन के शिकंजे से भी छूट जाता है, राजा के समक्ष विरक्ति से परिपूर्ण वचन कहता है, धीर उदासीन होकर निवृत्ति पथ पर चलने की इच्छा करता है । urat मनोबांचा वह अपनी पत्नी मनोरमा के सम्मुख व्यक्त करता है । मनोरमा से प्रेरणा पाकर जिनमन्दिर जाता है, वहाँ विमलवाहन नामक मुनिराज के दर्शनों पर वचनों से प्रभावित होकर दिगम्बर मुनि बन जाता है। इस बात में साध्वी मनोरमा भी पीछे नहीं रहती, वह भी बाह्य- माडम्बर त्याग कर प्रार्थिका व्रत को धारण कर लेती है : " माया महतीयं मोहिनी भवभाजो हो माया || भवति प्रकृतिः समीक्षरणीया. यहशगस्य सदाया । निष्फललतेव विचाररहिता स्वल्पपल्लवच्छाया ॥ दुरितसमारम्भप्राया | माया महतीयं ॥ समाशास्य यतीशानं न चाशाऽस्य यतः क्वचित् । पुनः स चेलालङ्कारं निश्चलाचारमभ्यगात् ॥ छायेव तं साऽप्यनुवर्तमाना तथैव सम्पादितसम्विधाना । तस्यैव साधोवंचसः प्रमारणाज्जनी जनुः सार्थमिति ब्रुवाणा ॥ शुक्लेकवस्त्रं प्रतिपद्यमाना परं समस्तोपषिमुज्झिहाना । मनोरमाभूदधुनेयमार्या न नग्नभावोऽयमवाचि नार्याः ॥" ( सांसारिक प्राणी को यह विमोहित करने वाली माया बहुत बड़ी सम्पति के समान लगती है । जो व्यक्ति इस माया के वश में हो जाते हैं, उनका व्यवहार शोचनीय हो जाता है। फलों से रहित, पक्षियों के संचार से रहित प्रोर थोड़े पत्तों के कारण थोड़ी सी छाया वाली लता के समान माया के वशीभूत व्यक्ति की चेष्टाएं निष्फल, विचार रहित, बोड़े से पुष्पों का सम्पादन करने वाली और पाप से पूर्ण होती हैं। XXX क्योंकि इस सुदर्शन के मन में सांसारिक वस्तुओंों के '
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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