SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि मानसागर के काव्य-एक मान संसार को दशा को देखकर दुःखी होना अनुभाव है। निर्वेद, जीवदया बादि व्यभिपारिभाव हैं। (ग) वीरोदय में शान्तरस का तीसरा और महत्त्वपूर्ण स्थल यह है, जहाँ भगवान महावीर के हृदय में स्थित 'शम' नामक स्थायी भाव पूर्णरूपेण जाग उठता है : "श्रीमतो वर्षमानस्य चित्ते चिन्तनमित्यभूत् । हिमाक्रान्ततया ष्ट्वा म्लानमम्भोरुहव्रजम् ॥ भुवने सम्धजनुषः कमलस्येव मारशः । क्षणादेव विपत्तिः स्यात्सम्पत्तिमधिगच्छतः । + + + किमन्यरहमप्यस्मि वञ्चितो माययाऽनया । धीवरोऽप्यम्बुपूरान्तःपाती यदिव झंझया। + + अस्मिन्नहन्तयाऽमुष्य पोषकं शोषकं पुनः । वांछामि संहरान्मेतदेवानर्यस्य कारणम् ॥ + + + वस्त्रेण वेष्टितः कस्माद् ब्रह्मचारी च सन्नहम् । दम्भो यन्न भवेरिक भो ब्रह्मवत्मनिवाषकः ।। + x . + विहाय मनसा वाचा कर्मणा सदनाश्रयम् । उपम्यहमपि प्रीत्या सदाऽऽनन्दनकं वनम् ॥ + + विजनं स विरक्तात्मा गत्वाऽप्यविजनाकुलम् । निष्कपटरवमुखतु पटानुज्झितवानपि ।। उच्चखान कचौघं स कल्मषोपममात्मनः । मौनमालब्धवानन्तरन्वेष्टुं दस्युसंग्रहम् ॥' (शीत के माक्रमण से मलिन कान्ति वाले कमलों के समूह को देखकर भगवान् वर्धमान विचार करने लगते हैं कि संसार में किसी के भी ऊपर.प्राने वाली विपत्ति का कोई निश्चित समय नहीं है। x x x जैसे जल के प्रवाह के बीच झंझावत है मांदोलित होकर मल्लाह इब जाता है, वैसे ही बुद्धि से युक्त होकर भी मैं इस संसार की माया से ठगा जा रहा हूँ। x x x महङ्कार, राग और + १. बीरोदय, ११-२६
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy