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________________ महाकवि भानसागर के संस्कृत-प्रमों में भावपन २५० (ख) बीरोदय में शान्तरस का दूसरा उदाहरण वहां देखने को मिलता है पर भगवान् महावीर विवाह के प्रस्ताव को अस्वीकार करके, संसार की दोनबशा का प्रबलोकन करते हैं : "स्वीयां पिपासां शमयेत परासजा क्षुषां परप्राणविपत्तिभिः प्रजा। स्वचक्षुषा स्वार्थपरायणां स्थिति निभालयामो जगतीशीमिति ॥ पजेन माता परितुष्यतीति तन्निगवते पूर्तजनः कथितम् । पिबेन्नु मातापि सुतस्य शोणितमहो निशायामपि प्रर्यमोदितः । पाया-सुतायं भुवि विस्फरन्मनाः कुर्यादजायाः सुतसंहति च । किमुच्यतामोडशि एवमार्यता स्ववान्छितार्थ स्विदनयंकायंता ॥ + + स्वरोटिको मोटयितं हि शिक्षते जनोऽखिलः सम्वलयेऽधुनाक्षितेः । नाचनाप्यन्यविचारतन्मना मलोकमेषा असते हि पूतना ॥ + महो पशूनां ध्रियते यतो बलिः श्मशानतामञ्चति देवतास्थली। यमस्थली वातुलरक्तरञ्जिता विभाति यस्यां सततं हि देहली ।। एक: सुरापानरतस्तपा वत पलङ्कषत्वात्कवरस्थलीकृतम् ॥ केनोवरं कोऽपि परस्य योषितं स्वस्वात्करोतीतरकोणनिष्ठितः ॥ कुतोऽपहारो द्रविणस्य दृश्यते तपोपहार: स्ववचः प्रपश्यते । परं कल हियते ऽन्यतो हटाद्विकीर्यते स्वोदरपूर्तये सटा ॥"" (माज लोग दूसरे के रक्त एवं मांस से अपनी पिपासा एवं शुषा को शान्त करना चाहते हैं । संसार में यही स्वार्थपरायणता दृष्टिगोचर हो रही है। पूर्त मोगों का कहना है कि बकरे की बलि से जगदम्बा प्रसन्न होती है। यदि माता अपने हो पुत्रों का खून पीने लगे तो यह वैसा ही होगा जैसे रात्रि में सूर्य का उदय होना । स्वार्थी मनुष्य अपनी स्त्री से पुत्र के लोभ में बकरी के पुत्र का हनन कर रहा है। x x x इस संसार में जिसे देखो वही अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगा हुमा है। x x x मन्दिरों से सुशोभित पवित्र भूमि पशुमों की बलि पारण करती हई श्मशान की ही श्रेणी में पहुंच रही है। उन मन्दिरों की देहली रक्त से रजित होकर यमलोक जैसी ही लग रही है । लोग मन-मांस-परस्त्री-सेवन, पोरी, बेईमानी और दुराचार में संलग्न हो रहे है।) उपर्युक्त श्लोकों में संसार का वैचित्य मालम्बन-विभाव है । लोगों की स्वापरायणता, प्रज्ञान, समाज में व्यभिचार की वृद्धि इत्यादि उद्दीपन विभाव है। १. बोरोक्य, ३१५
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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