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________________ सप्तम अध्याय महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-ग्रन्थों में भावपक्ष काव्य के दो पक्ष होते हैं-भावपक्ष मोर कलापक्ष । उपर्युक्त दोनों पक्षों में भावपक्ष मधिक महत्वपूर्ण होता है। कवि द्वारा काव्य में प्रयुक्त मर्मस्पर्शी-काव्यउपादानों का नाम ही भावपक्ष है । यह काव्य का प्राणतत्व है । समाज में सहृदयता से रहित व्यक्ति को हृदयहीन पषवा पाषाण-हृदय कहा जाता है। इसी प्रकार काव्य में भावपक्ष की उपेक्षा करने वाले को कठिन-काव्य का प्रेत कहा जाता है। भावपारहित काव्य सौरभहीन पुष्प के समान किसी को अच्छा नहीं लगता, बल्कि फल के साररहित छिलके के समान अग्राह्य लगता है। काव्य को सहृदयहृदयग्राह्य बनाने के लिए मावश्यक है कि उसमें भावपक्ष और कलापक्ष का सन्तुलन हो। पाकाश में वो स्थान सूर्य का है, काम्य में वही स्थान भावपक्ष का है। भावपक्ष ही काग्य को वास्तविक काव्य की संज्ञा प्रदान करता है। भावपक्ष ही हमारे समक्ष कवि के हृदय में स्थित भावनामों का प्रस्तुतीकरण करता है। यही वह तत्व है। जिसके द्वारा हम कवि और अपने मध्य एक तादात्म्य की अनुभूति करते हैं । भावपक्ष ही काव्य का वास्तविक भाव (मूल्य) है । काग्य में इस तत्त्व की विद्यमानता जितनी ज्यादा होती है-काव्यप्रेमी पाठक उतना ही मानन्द-सरोवर में डूब जाता है, यहां तक कि अपने-मापको भूल जाता है। फिर काव्य के प्रयोजनों में वो प्रमुख प्रयोजन-सद्यः परनिति एवं कान्तासम्मत उपदेश भी हैं।' देखा जाता है कि पुरुष पर अपने गुरुजनों की प्रपेक्षा अपनी पत्नी की बातों का ज्यादा प्रभाव पड़ता है। वह अपनी सरस चेष्ठामों से उसे कर्तव्याकर्तव्य का जान कराने में अधिक प्रभावशालिनी होती है। इसी प्रकार व्यक्ति नीतिशास्त्रों के माध्यम से पूर्ण उपदेश ग्रहण नहीं कर पाता। हाँ, यदि उसे काव्य के माध्यम से उपदेश दिया जाए, तो वह मनोरञ्जन के बहाने सहज ही में उसे धारण कर लेता है। काव्य के ये दोनों प्रयोजन उसमें विद्यमान भावपक्ष से ही सिद्ध हो सकते हैं। १. मम्मट, काव्यप्रकाश, ११२
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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