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________________ २४४ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन प्रकृति का प्रतीकात्मक वर्णन करते हुए भी कवि ने प्रकृति-वर्णन में पाठक को अपनी अद्भुत क्षमता का परिचय कराया है । इसीलिए पटल हिमालय, पावनसलिला गङ्गा, ऋषियों से सेव्य बन, गहन-समुद्र, अप्सरामों के समान सुन्दर सरोवर, ऋतुराज, वसन्त, शुभाकाशशरद, भयकुर शीत, मन को उल्मसित करने बाली वर्षा, तमोनाशक प्रभात, पिशाचिनी के समान भयङ्कर रात्रि मोर सन्ध्यासुन्दरी-इन सभी प्राकृतिक पदार्थो के वर्णन में कवि की सूक्ष्मदर्शनशक्ति स्पष्ट झलकती है, और पाठक को अनायास ही प्राकृष्ट करती है । __ इसी प्रकार वंकृतिक-पदार्थ-वर्णन में भी कवि कम निपुण नहीं है। उन्होंने उपने काव्य के कथाप्रसङ्गों से सम्बन्धित सभी वस्तुमों का वर्णन किया है। वा ग्राम-जीवन पौर नगर-जीवन अन्तर को भी अच्छी प्रकार समझते हैं, इसीलिए वस्तुस्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्होंने नागरिक-जीवन को भोगविलास से युक्त बताया है, और ग्रामीण जीवन में सारल्य की प्रधानता बताई है। नगरों में रत्नसम्पदा है, तो ग्रामों में शस्य-सम्पदा। कवि ने महावीर के कैवल्य जान से युक्त होने के सम्बन्ध में समवशरण मण्डप का वर्णन किया है। स्थानस्थान पर जिनायतन और जैन-मन्दिरों का भी वर्णन है। कवि का भौगोलिकस्थान-वर्णन, हमें तत्कालीन वास्तुकला का ज्ञान कराता है। कवि को सभी रचनाएं धार्मिकता से युक्त हैं, इसलिए उन्होंने जो मन्दिर वर्णन किया है वह मल्प है। कवि ने देवतामों की कुण्डनपुर की यात्रा, जयकुमार की सेना को युद्धयात्रा पौर जयकुमार की रथयात्रा का भी अच्छा वर्णन किया है । यात्रा में कोई भी व्यक्ति किस प्रकार अपना मनोरञ्जन कर सकता है-यह कवि के इन यात्रा-वर्णनों से ज्ञात हो जाता है। युद्ध का वर्णन कवि ने केवल एक स्थल पर किया है। इसका कारण यह है कि कवि की सभी कृतियों में भक्तिभाव मोर शान्तरस को ही प्रधानता है । प्रता पुद्ध-वर्णन से निष्पन्न वीर रस प्रङ्ग रस के ही रूप में अभिव्यक्त हुमा है। इतना होते हुए भी कवि अपने एकस्थलीय युद्धवर्णन से पाठकों के हृदय को उल्लसित करने में मोर कंपाने में पूर्ण समय है । उनके युद्ध-वर्णन में मुढ़कते हुए शिर पोर कबन्ध, चमकती हुई प्रसिलता, टकराते हुए प्रस्त्र युद्ध की सजीव झांकी हमारे समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। • कवि के काव्यों में परिणत दोला-क्रीड़ा, पतङ्ग-क्रीड़ा, सुरतविहार, पानगोष्ठी, बरात स्वागत इत्यादि भी उनकी सूझ-बूझ के परिचायक हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि कवि ने अपने काव्यों के कथानकों के वातावरण में उपसम्म सभी पदार्थों का साङ्गोपाङ्ग वर्णन किया है । प्रतः हम उन्हें वर्णन-कौशल की दृष्टि से भी एक सफल महाकवि मान सकते हैं।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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