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________________ २२६ महाकवि जामसागर के काम्ब-एक अध्ययन श-वर्णन महाकवि की रचनात्रों में चार स्थलों में देश-वर्णन विस्तार से है। सर्वप्रथम भारतवर्ष का वर्णन प्रस्तुत हैभारत-वर्णन जम्बूद्वीप में दक्षिण दिशा की ओर समद्धिशाली भारतवर्ष की स्थिति है। जिस प्रकार एक अच्छा खेत वर्षा के जल से सींचे जाने पर अनेक प्रकार के अनाज को उत्पन्न करता है, वैसे ही यह भारतवर्ष श्रेष्ठ तीर्थकर देवों के प्रागमन रूप बल से सिंचित होकर स्वर्ग और मोक्ष नामक पुण्यविशिष्ट धान्य को उत्पन्न करने बाला है। भारतवर्ष के उत्तरपूर्व में पर्वतराज हिमालय है और पृष्ठभाग में समुद्र की स्थिति है । अनेक तीर्थङ्करों ने भारतभूमि में जन्म लिया है। इसमें गङ्गा पोर सिन्धु जैसी नदियाँ हैं । मध्य में विजयाचं पर्वत स्थित है। इसमें मार्यावर्त प्रादि पः खण्ड हैं।' विदेह-देश वर्णन भारतवर्ष के पार्षखण्ड में प्रत्यन्त सुन्दर विदेह नाम वाला देश है, को स्वर्गोषम है। विदेह देश के नगर और सामों में गगनचुम्बी स्वगिक वैभव से युक्त प्रासाद है । विदेह देश के नगरों में कमलों से सुशोभित मोर जल से परिपूर्स सरोवर है । स्वर्ग में विद्यमान कल्पपक्षों के समान, इस देश में भी लोगों को उनके प्रभीष्ट फल देने वाले वृक्ष हैं। विदेश-देश की सुसज्जित-ग्राम-सम्पदा का वर्णन कवि के ही शब्दों में देखिये "प्रनल्पपीताम्बरधामरम्बा: पवित्रपद्माप्सरसोऽप्यदम्याः । अनेककल्पद्रुमसम्विधाना प्रामा लसन्ति त्रिदिवोपमानाः ॥" (वीरोदय, २०१०) - उस विदेह देश में ग्राम और नगरों के बाहर अपनी शिखाओं से प्राकाम को व्याप्त करने वाले नबीम भाग्य के कूट ऐसे शोभित होते हैं जैसे पूर्व पश्चिम दिशा को जाने वाले सूर्य के क्रीडा पर्वत हों। उस देश की पृथ्वा भ्रमरों से गुञ्जायमान गुलाब के फूलों से सुशोभित होकर उस सुन्दर नेत्रों वाली स्त्री के समान मम रही है, जो अपने सौभाग्य को अभिव्यका करती है। अनाज के खेतों की रक्षा करने वाली पालिकामों के द्वारा ऐसे मोत माये जाते हैं कि उन गीतों को सुनकर वहाँ धान्य चरने के लिये पाये हुए मृग इस प्रकार निश्चल हो जाते हैं कि पषिक उन्हें चित्रलिखिस समझ लेता है। जिस प्रकार परोपकारी पुरुष विनय को पारस करते हैं। और समीप में मावे हमे लोगों का हित करते हैं; साप झे सन्मार्ग की दिशा भी देते हैं, उसी प्रकार विदेह-देश के वृक्षों में पक्षियों का निवास हैलों के भार से वे वृक्ष भूक बये हैं। अपने हरे-भरे पत्तों जी सम्पदा से लोगों १. वीरोदय, २।५-८
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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