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________________ महाकवि ज्ञानसागर का वर्णन-कौशल २२५ इसलिए रात्रि, ऋतु प्रादि का वर्णन प्रकृति-वर्णन के अन्तर्गत पाता है । अब दूसरा प्रश्न है कि वह विशिष्ट कथा, जिसे कोई कवि अपने काव्य का विषय बनाता है, कैसे स्थान पोर किस स्थान में घटित होती है? इसी के उत्तर में प्रस्तुत है वस्तुवर्णन-मनुष्य को हस्तकला के कौशल का परिचय । . किसी काम्य को हर पौर स्वाभाविक बनाने के लिए प्रकृति-वर्णन जितना मावश्यक तत्व है, उतना ही पावश्यक तत्त्व वस्तु-वर्णन भी है। वस्तु-वर्णन से ही पाठक को नायक इत्यादि पात्रों के जन्मस्थान, रहन-सहन सामाजिक-स्थिति, भाषिक-स्थिति प्रादि का ज्ञान होता है। साथ ही पाठक यह भी जान लेता है कि कवि का ऐतिहासिक एवं भौगोलिक ज्ञान सा है और उन स्थलों की सूक्ष्मातिसूक्ष्म विशेषतामों से परिचित कराने में कवि कुशल है अथवा नहीं? । वस्तु-वर्णन, संस्कृत साहित्य हो या अन्य कोई साहित्य हो-काव्य का एक परम्परागत तत्त्व है । उदाहरणस्वरूप-नषषकार श्रीहर्ष, नलचम्पूकार श्रोत्रिविक्रमभट्ट, कादम्बरीकार बाणभट्ट, तिलकमञ्जरीकार धनपाल इत्यादि मे नगरों भोर मन्दिरों का इतना सुन्दर वर्णन किया है कि पाठक उन-उन विशिष्ट-स्थलों के सौन्दर्य पर मोहित होकर, मुख्य कथा-प्रसङ्ग को भूलकर कवि की सूझबूझ पर वाह-वाह करने लगता है। यद्यपि प्राज के साहित्य में वस्तु-वर्णन का वह महत्त्व नहीं रह गया है, जो प्राचीन समय में बा, फिर भी संस्कृत-साहित्यकार पोड़ा . बहुत वस्तु-वर्णन अपने काव्यों में करता ही है। हमारे पालोज्य महाकवि ज्ञानसागर ने भी प्राचीन कवियों द्वारा चलाई हुई वस्तु-वर्णन की परम्परा को अपने काव्यों में अपनाया है। उन्होंने अपने काव्यों में कथा-प्रसङ्ग से सम्बन्धित स्थलों का वर्णन करने में अपनी कुशलता का परिचय दिया है । हम किसी महाकवि से उनकी तुलना करने में सोच नहीं करेंगे। भी ज्ञानसागर देशकाल से उत्पन्न विशिष्ट वातावरण के प्रति माष्ट पाठक की मनोवृत्ति को भी अच्छी तरह जानते हैं। पाठकों की इसी मनोवृत्ति का पावर करते हुये उन्होंने अपने काम्यों में नगर, मन्दिर, मण्डप, यात्रा पोर युद्ध का प्रतीब सजीव चित्र खींचा है। यदि उनका नगर-वर्णन हमें विभिन्न प्रकार के साधनों से परिपूर्ण वैभवपाली बड़े-बड़े नगरों की भोर मारुष्ट करता है तो उनका प्रामवर्णन भी प्रामवासियों के सरलता से परिपूर्ण रहन-सहन का परिचय कराता है। उनका मन्दिर पौर मण्डप-वर्णन पाठक को उनकी वास्तुकला-मर्मशता से परिचित कराता है। इसी प्रकार उनके द्वारा किया गया यात्रा मोर पुर का वर्णन भी उनकी सूक्ष्म-रष्टि का परिचायक है। कविकृत-वर्णन के अनुसार ही अब पापके सामने देश, नगर इत्यादि का वर्णन प्रस्तुत किया जाएगा।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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