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________________ महाकवि शामसागर का वर्णन-कौशल २२७ को छाया देकर उनका हित-सम्पादन करते हुये सुशोभित हो रहे हैं । उस देश की नदियाँ स्वच्छ जल से परिपूर्ण हैं। उनमें स्थान-स्थान पर पृथ्वी के नेत्रों के समान नीलकमल शोभायमान हैं । X X X X उस देश के नगरों के बाजारों मैं, दुकानों के बाहर, रत्नों के बड़े-बड़े ढेर बिकने के लिए लगे रहते हैं। ऐसा लगता है, मानों वे धापत्ति की हँसी उड़ाने वाले लक्ष्मी के क्रीड़ा पर्वत हों। उस देश की गायें अमृतवर्षी चन्द्रमा की ज्योत्स्ना के समान दूध देने वाली, कीर्ति के समान निरन्तर वृद्धि को प्राप्त करने वाली पुण्यों को पंक्ति के समान ही अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के कारण दर्शनीय हैं । " १ मालव-देश वर्णन प्रार्यावर्त खण्ड में पुरुषार्थ-चतुष्टय से सम्पन्न मालव नाम का सुविख्यात देश है जो कि पृथ्वी पर मलकार के समान सुस्थित है। यहाँ षड् ऋतुएँ यथा समय उपस्थित होती हैं। यह देश स्वर्गोपम है । इसमें कल्पवृक्षों के समान मनेक वृक्ष हैं । स्वर्गं मनोहर प्रप्सरानों से युक्त है; और यह देश स्वच्छ जल बोले सरोवरों से युक्त है । इस देश के ग्रामों में भेड़ों प्रोर बकरियों के झुण्ड गो-सम्पदा प्रत्यधिक है । वे उपवन और धान्य से युक्त है। ग्रामों में कृषक वर्ग ही निवास करता है । " - दिखाई पड़ते हैं । उनमें मुख्यतया इस देश के प्रङ्ग-देश बन जम्बूद्वीप में पृथ्वी का ललाटस्वरूप भरत नामका क्षेत्र है । इस क्षेत्र में प्रार्यावतं नाम का खण्ड है, जिसमें सिन्धु प्रोर गङ्गा नाम की नदियाँ हैं । इसी भरत क्षेत्र में बुद्धिमानों द्वारा प्रशंसा प्राप्त अत्यन्त सुन्दर भङ्ग नाम का देश है । उस देश में गन्ने को उत्पत्ति अधिक थी, इसलिए वहाँ के निवासियों को गुड़, खाण्ड, शक्कर इत्यादि मधुर पदार्थ प्रासानी से प्राप्त हो जाते थे । उस देश में लम्बीलम्बी शाखाम्रों वाले, पक्षियों के मधुर कलरव से मुक्त फलदार वृक्ष थे, ऐसा लगता था, मानों अपनी लम्बी-लम्बी शाखा रूप भुजानों के द्वारा, पक्षियों के मधुरकलरव के बहाने से फलों को प्रदान करने के लिए पथिक जनों को बार-बार बुला कर कल्पवृक्षों को पराजित करते हैं। भङ्ग देश के इन सुन्दर वृक्षों का वर्णन कवि की ही शब्दावली में देखिये "समुच्छलच्छाखतयाऽथ वीनां कलध्वनीनां भृशमध्वनीनाम् । फलप्रदानाय समाह्वयुतः श्रीपादवाः कल्पतरु जयन्तः ॥ " १. दयोदय चम्पू, १ श्लोक १० के पूर्व के गद्यभाग । (सुदर्शनोदय, १/१७)
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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