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________________ महाकवि ज्ञानसागर का वर्णन-कौशल २२१ प्रतीत होता है कि ग्रीष्म ऋतु में हिम का शत्रु होकर भी सूर्य हिमालय की गुफाओं में विश्राम करके मागे बढ़ता है, यदि ऐसा नहीं है तो ये दिन बड़े क्यों हो इसी प्रकार शीतकाल में दिनों के छोटे होने के सम्बन्ध में भी कवि की उदभावना है कि : "श्यामास्ति शीताकुलितेति मत्वा प्रोत्याम्वरं वासर एष दत्वा । किलाधिकं संकुचितः स्त्रयन्तु तस्य पुनस्तिष्ठति कोतितन्तु ॥" (वीरोदय-६।२९) ऐसा लगता है मानों इस शीतकाल में यह रात्रि शीत से व्याकुल है, ऐसा समझकर दिवस प्रेमपूर्वक उसे अधिक समय दे देता है। और स्वयं संकुचित होकर बैठ जाता है। सन्ध्या -वर्णन श्रीज्ञानसागर ने अपनी दयोदय एवं जयोदय नामक दो कृतियों में दो स्थलों पर सन्ध्या-सुन्दरी का वर्णन किया है । दयोदय-चम्पू में सन्ध्या का वर्णन कवि ने वहां पर किया है जहां घण्टा नामक धीवरी अपने पति मगसेन की प्रतीक्षा कर रही सन्ध्या-समय हो रहा है। भगवान् सूर्य सम्पूर्ण दिन विना रुके घूमने के कारण थक गए हैं, इसलिए प्रस्ताचल के उच्चशृङ्ग का सहारा लेकर विश्राम करना चाहते हैं । बहुत देर के बाद दिवस की समाप्ति पर समीप पाते हुए सूर्य को स्वीकार करने के लिए मानों प्रत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव करती हुई, खिले हुए अरविन्दों के समूह से निकले हुए रङ्ग से रङ्गी हुई साड़ी को धारण करती हुई यह पश्चिम विशा अपने पोसलों को खोजने में तत्पर पक्षियों के द्वारा किए जाते हुए कलरव के बहाने सूर्य के स्वागत में गीत गाती हुई सी सुशोभित हो रही है। इस काल में उल्लू पक्षी अपने मन में चोर की तरह प्रसन्नता का अनुभव कर रहा है । चकवी चकवे से वियुक्त हो रही है। कमलिनी अपने अन्दर भ्रमर को बन्द करके कामी पुरुष को अपने प्राश्रय में शरण देने वाली वेश्या के समान पाचरण कर रही है। मूर्ख प्राणी के मन को जिस प्रकार पाप घेर लेता है, उसी प्रकार मत्यकार सारे संसार पर प्राक्रमण कर रहा है। गायें वन से लोटकर पशुशाला में मा चुकी है। जयोदय नामक महाकाव्य में गङ्गा-नदी के तट पर वन-विहार के प्रसङ्ग में कवि ने सन्ध्या का प्रत्यन्त विस्तृत वर्णन किया है, जिसका संक्षिप्त रूप इस प्रकार है : १ दयोदयचम्पू, २ श्लोक ६ और ७ एवं उनके पूर्व एवं बाद के गद्यभाग ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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