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________________ महाकवि ज्ञानसागर का वर्णन-कौशल . २०१ 'जयोदय' में सुमेरु-पर्वत-वर्णन से सम्बन्धित वर्णन यहाँ है, जहाँ जयकुमार सुलोचना के साथ तीर्थयात्रा के लिए जाते हैं । सूर्य और चन्द्र को साथ-साथ धारण करता हुप्रा वह पर्वत जयकुमार को ऐसा लगता है, जैसे वह पीताम्बर को धारण करने से देह का लुप्त हो गई वास्तविक छवि वाले और दोनों हाथों में चक्र पोर शङ्ख धारण करने वाले भगवान् विष्णु का रूप हो । बादलों के विस्तार के संयोग से सन्दर, ताजे चन्दन से युक्त तलहटी वाला वह पर्वत, अपने प्राधे शरीर में पार्वती को स्थित करने वाले भगवान् शङ्कर के समान सुशोभित था।' हिमालय-पर्वत श्रीज्ञानसागर के काव्यों में हिमालय पर्वत का वर्णन दो बार मिलता है। एक बार वीरोदय में, प्रौर एक बार जयोदर में । वीरोदय के स्थल पर भारतवर्ष जिनसद्मसमन्वयच्छ नाद् धृतमूर्तीनि बिभर्ति यो बलात् । अपि तीर्थकरत्व कारणान्युपयुक्तानि गतोऽत्र धारणाम् ॥ निजनीति चतुष्टयान्वयं गहनव्याजवशेन धारयन् । निखिलेप्वपि पर्वतेष्वयं प्रभुरूपेण विराजते स्वयम् ।। गुरुमभ्युपगम्य गोरवे शिरसा मेरुरुवाह संस्तवे ।। प्रभुरेष गभीरतावि: स च तन्वा परिवारितोऽनिधेः ।, -वीरोदय: ७१८-२२ १. विहाय सासो विहरन्महाशयः शयद्वयं सकलयंश्च सावलः । बलप्रभुश्चैत्यनिकेतनं प्रति प्रतिष्ठितो मेरुगिरी विभाविहा । परीतपीताम्बरलुप्तदेहरुक् करद्वयी प्रापितचक्रकम्बुकः । विराजते विद्यारिवाजतेजसा गिरी रवीन्दू द्वयत: स उद्वहन् । पयोधराभोगस योगमंजुला तटीं समन्ताद् हरिचन्दनाञ्चिताम् । गिरीश्वर: सेवत एव सतरां निजार्द्धदेहानुमितां च पार्वती । अथापि जम्बूपपदेऽन्तरीके स एव सम्यक खलु कणिकायते । विदेहदेवोत्तरदेशपत्रकैः पयोधिमध्ये श्रिय पासनायते ॥ चतुर्गुणी कृत्य जिनालयानसो सदातनान्दिक्ष महाजनाञ्चितान् । जिनश्रियः षोडशकारणानि वै विभर्ति भव्यानि च तानि सर्वदा ॥ यदन्तिके दो दिरदौ विमुच्यतो जलोरुधारामपि नोलनप्रधी। रवीन्दुविम्बे द्वयतोऽन्यदर्पणे वहन्नसो तल्लभते रमाकृतिम् ॥ तथैव सब्येतरनीलनैषधः सटायमानोऽपरम्परः परम् । गिरीः सनीलाम्बरपीतवाससो विरञ्चिपुत्रस्य विभति सच्छबिम् ॥ भियेव भव्यो भवभावितच्छलस्स्वयं महोद्यानचतुष्टयपछलात् । सुवृत्त एताः परिवर्तिताकृती विभति धर्मार्थ निकामनिव॑तीः ।। -जयोदय, २४॥४.११
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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