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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन
व्यक्ति-मनोविज्ञान के अच्छे जानकार हैं । व्यक्तियों की च और स्वभाव भिन्नभिन्न होते हैं, इसका भी पूरा-पूरा ध्यान उनको है। एक अनाथ बालक को देखकर एक पुरुष तो उसका भविष्य अपनी पुत्री से जुड़ना हुया जानकर उसमे द्वेष करने लगता है। इसके विपरीत दूसरे परुष के हृदय में वात्सल्य का स्रोत उमड़ पड़ता है। एक स्त्री पति पर अत्यधिक भक्ति रखती है; दूसरी स्त्री मन्य परुपों पर कुष्टि रखती है । एक सेवक राजा को उचित मन्त्रणा देता है, तो दूसरा कुटिल पुरुष उसे युद्ध के लिए प्रेरित करता है । मद्यपान के पश्चात् व्यक्ति का मरिक कैसा निकृत हो जाता है, इसका चित्रण भी कवि ने बड़ी सूझ-बूझ के साथ किया है। एक राजा पराक्रमी, अात्मविश्वासी और प्रजावत्सल है, तो दूसग राजा भीर प्रकृति का है । वह प्रजा की बात नहीं सुनता, अपितु अपनी स्त्री के झूठे प्रपञ्च पर विश्वास कर लेता है । कवि ने हर वर्ग के पात्रों को अपने काव्यों में स्थान दिया है । राजमहलों में रहने वाले राजा-रानी अपने वैभव से प्राकर्षित करते हैं, तो सामान्य वस्ती में रहने वाले ग्वाल इत्यादि का सरल जीवन, भी स्पहरणीय है। राजकर्मचारियों में उच्चस्तर के मंत्री भी हैं और निम्नस्तर के सेवक भी। राजकुमारियों की सखियाँ भो हैं और रानियों की दासियां भी। जिनमति जैसी कुलवधू हैं तो वसन्त सेना जैसी वारांगना भी।
___ सब कुछ मिलाकर कवि की पात्रयोजना प्रशंसनीय है। काव्यों में चित्रित पात्रों की मनोदशा उनकी सूक्ष्म निरीक्षण-शक्ति का परिचायक है । काव्य में कोई भी व्यक्ति अपने पूर्व जन्म से कितना प्रभावित रहता है, इसका चित्रण करने में भी कवि ने अपनी सूझ-बूझ का परिचय दिया है ।