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________________ महाकवि ज्ञानसागर को पात्रयोजना १६५ स्वभाव वाले अपने पात्रों को अपने काव्यों में लिया है। उन्होंने लगभग ७६ पात्रों का नियोजन अपने काव्यों में किया है । ये सभी पात्र काव्य में पात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रयुक्त नहीं किये गये हैं अपितु इनके द्वारा समाज को कुछ न कुछ देने के लिये ही इनका प्रयोग किया गया है। कवि के काव्यों के परिशीलन से स्पष्ट है कि कवि के सभी काव्य शिक्षाप्रद हैं। यह शिक्षा हमें पात्रों के माध्यम से मिलती है। 'जयोदय' काव्य के नायक जयकुमार पराक्रम, निश्छल प्रेम, कर्तव्यपरायणता न्यायप्रियता और नम्रता की शिक्षा देते हैं 'वीरोदय' महाकाव्य के नायक भगवान् महावीर हमें ब्रह्मचर्य, त्याग, तपस्या पौर सहिष्णुता की शिक्षा देते हैं । 'सुदर्शनोदय के नायक सुदर्शन समाज को एकपत्नीव्रत, भगवान के प्रति आस्था, दृढ़ता मोर त्याग को शिक्षा देते हैं। 'श्रीसमुद्रदत्त चरित्र' के नायक भद्रमित्र हमें सत्य, मस्लेय, पौर धर्म की शिक्षा देते हैं । 'दयोदयचम्पू' के नायक सोमदत्त विनम्रता, माशाकारिता, अहिंसा, करलहृदयता और अतिथि-वत्सला की शिक्षा देते हैं। ... सुलोचना, मनोरमा, विपा ('जयोदय', 'सुदर्शनोदय' मोर 'दयोवयचम्पू की नायिकाएं) भारतीय स्त्रियों के लिए आदर्श है। ये सभी स्त्रियां हमें एक मोर एकनिष्ठ प्रेम को शिक्षा देती हैं, तो दूसरी पोर पातिव्रत्य, पतिमार्गानुसरण, स्याग पौर जिनेन्द्रभक्ति को भी शिक्षा देती है । हमारे समाज में कुछ जनसुधारक लोग होते हैं। उनका जीवन त्याग, तपस्या, नम्रता और जनहित इत्याटि श्रेष्ठ भावनाकों से परिपूर्ण होता है। ऐसे ही लोकनायकों के कार में कवि ने ऋषि-मुनियों का उल्लेख किया है। ये तपस्वी महापुरुष प्रतिक्षण हमें संसार को क्षणभंगुरता का ज्ञान कराते रहते हैं; मौर मानव का वास्तविक गन्तव्य क्या है ? ---- इसकी शिक्षा देते हैं । प्रर्ककोति, मभयमती, सत्यघोष और गुणपाल इत्यादि के चरित्र हमें दुराई का स्वरूप बताते हुए उससे बचने की प्रेरणा देते हैं । पाठक इनके विषय में पढ़ते हुए ऐसे दुष्ट व्यक्तियों से दूर रहने को सचेष्ट हो जाता है। पण्डिता बासी; चाण्डाल इत्यादि हमें प्राज्ञाकारिता और स्वामी के हितचिन्तन की मोर प्रेरित करते हैं । इन पात्रों के अनुसार अपने स्वामी की हर इच्छा पूर्ण करना उसके सेवक का कर्तव्य है। प्रतएव कवि के काव्यों के सभी पात्र सामाजिक रष्टि से उपयोगी है। किसी भी पात्र को कवि ने पात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रयुक्त नहीं किया है। उनके काग्य का राजा यदि समाज को कुछ दे सकता है तो सेवक वर्ग भी इसमें पीछे नहीं है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हमारे मालोच्य महाकवि ज्ञानसागर
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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