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________________ १९४ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-- एक अध्ययन चक्रायुध के पुत्र वज्रायुध का जन्म हुआ।' महारल 'दयोवाचम्प' की नायिका विषा का प्रिय भाई है। वह गुणज्ञ, माज्ञाकारी है।' अपनी बहिन से उसे प्रेम है; उसका हित करने के लिए वह शीघ्र ही सोमदत्त को प्रोग्याझ कर, सोमदत्त के साथ उसका विवाह कर देता है । सोमदत्त के प्रति उयका अत्यधिक प्रादर पोर प्रेम है । वह सदेव मोमदत्त के सिर कार्यभार को हल्का करने में चेट रहता है। इसी चेष्टा में सोम दत्त के स्थान पर हत्या का पालन कर कथानक को कु: और ही रूप प्रदान कर देता है। इसी काव्य में वधिकलो रूप हैं। इन दोनों ही वधिकों को धन का लालच देकर गुणपाल ने सोमना की हत्या करने के लिए तैयार किया था। पहला वधिक तो सोमदत्त के कर दया करते और प्राप्त हुए पन को प्रपना प्राप्य समझकर सोमदत को नहीं मारता। दूसरा यधिक मारता तो है, किन्तु सोमदत्त को नहीं महाबल को। वह सोमदत्त पोर महाबल में भेव नहीं कर पाता। राजा वामदत्त उज्जयिनी का स्वामी है । उसकी पत्नी का नाम वृषभदत्ता हैं । राजा प्रजावत्सल है । वह गुणपाल का पादर करता है। गुणपाल को मत्यु होने पर उसे गुगणपाल की वास्तविकता का ज्ञान होता है. तब शीघ्र ही पपने दूत से सोमदत्त को बलमा लेता है । जो सर्वथा योग्य समझकर अपनी पुत्री गुणमाला का विवाह उसमे कर देता है। अत: राजा को भी सद्गुणों की अच्छी पहचान है। राजा का दुत बोलने में बड़ा चतुर है। उसकी वाक्चतुरता सोमदत्त और उसके वार्तालाप से बात होती है। राजा का मंत्री मत्यधिक योग्यता मे कर्तव्यपालन करता है। नगर में एक-एक गतिविधि का उसे ज्ञान है। इसलिए यह गुण पाल की मत्यु के विषय में राजा को बताता है। उपर्यवत विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्रीज्ञारमागर ने समाज . प्राप्त होने वाले सभी व्यक्तियों के स्वभाव के अनुसार हो भिन्न-भिन्न १. समुद्रदत्तचरित्र ६।१८-२४ २. दयोदयचा, ४ श्लोक १७ के पूर्व के गद्य भाग, १७-२२, श्लोक १२ के बाद के गहाभाग से १४ तक। ३. वही, ३ श्लोक ६ के बाद के गद्यभाग से श्लोक ५ तक । ४. वही, ५॥ श्लोक के गद्य भाग, श्लोक १२ के पूर्व के गद्यभाग, श्लोक १२ से लोक १४ के बाद का गद्य भाग। ५. दयोदयचम्पू, १.१२.१३ ६. वही, ७.१.२३ ७ वही, ७॥२-५ ८. वही, ७ श्लोक १ के बाद के गबभाग ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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