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महाकवि ज्ञानसागर की पात्रयोजना
१६३ के लिए कुण्डनपुर पहुंचते हैं; भोर अन्य देवगणों के साथ भगवान् का अभिषेक करते हैं।' भगवान् महावीर के प्रमुख गणधर हैं-गौतम इन्द्रभूति । भगवान् की महिमा से प्रभावित होकर यह पोर इनके अन्य भाई भी भगवान् के भक्त हो जाते हैं।
प्राचार्य श्रीज्ञानसागर के काव्यों में स्थान-स्थान पर ऋषियों का भी उल्लेख है। ऋषि प्राय: जनता को प्रबद्ध करने में ही लगे रहते हैं। उनकी कठिन समस्याओं को सुलझाते हैं। मुक्ति हेतु साधक का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इन्होंने स्वयं सांसारिक वस्तुनों को सर्वथा त्याग दिया है । 'सुदर्शनोदय' और 'दयोदयचम्पू' में उल्लिखित मुनि तो कथानक को भी प्रभावित करते हैं।'
कपिल 'सुदर्शनोदय' में उल्लिखित सदर्शन के मित्रों में से एक है। मोर मर्म को जानता है। इसी काग्य में वणित द्वारपाल बड़े भीरु स्वभाव का है, वह पण्डिता दासी से मात खा जाता है ।५ राजा का वषिक प्राज्ञाकारी सेवक है। सुदर्शन के प्रवल भाग्यवश वह राजा की प्राशा पूर्ण करने में असमर्थ है।
श्रीसमुद्रदत्तचरित्र में उल्लिखित सिंहसेन सिंहपूर का राजा है । सत्यघोष के अपदस्थ हो जाने पर पम्मिल्ल नामक व्यक्ति इसका मन्त्री बनता है। अपने बन्दर के जन्म में यह सत्यघोष के जीव को नष्ट कर देता है । " सुदत्त दोनों अपने एकमात्र पुत्र से प्रत्यधिक प्रेम करते हैं । सुमित्रा में धन का लोभ भी पा जाता है। इसी कारण व्याघ्री के जन्म में वह अपने पुत्र को खाने में नहीं हिचकती। - सुन्दरी, राजा अपराजित की पत्नी है। राजा अपराजित चक्रपुर का श्रेष्ठ शासक है। वह परमधार्मिक मोर त्यागी है। उसकी रानी सुन्दरी प्रत्यधिक सौन्दर्यशालिनी है । सुन्दरी मौर राजा अपराजित से भद्रामित्र चक्रायुध के रूप में जन्म लेता है ।१० चित्रमाला चक्रायुध की नवयुवती सुन्दरी पत्नी है। इसी से
१. वीरोदय, ७वा सर्ग। २. वही, १३।३२ और १४१२ ३. (क) सुदर्शनोदय, चतुर्थ सर्ग ।
(ख) दयोदय, ११८ श्लोक से द्वितीय लम्ब तक । ४. सुदर्शनोदय ३-३८-४१ ५. वही, ७-१-७ ६. वही, ८५,६ ७. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३११८, ४१४, ३७ ८. वही, १२६-३० १. वही, ४१७.६. १०. वही, ६।९-१५