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________________ १८६ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्ययन जीवन-काल में ही जब उसके घर एक ऋषि का समागम होता है, तब वह सपत्नीक उनका स्वागत करता है; और उनकी स्तुति में संगीतप्रियता दर्शाते हुए भजन गाता है : "जय-जय ऋषिराज पितु जय जय ऋषिराज ॥ भूराज्यादि समस्तमपि भवान् सहसा तत्याज ।। पोत इवोत तारणाय सदा भवतो भवभाजः ।। -दयोदयचम्पू, ७।श्लोक २६ के बाद का पीत । सोमदत्त में सहनशीलता, दानशीलता मोर सुख-दुःख के प्रति निलिप्तता इत्यादि गण भी देखने को मिलते हैं। विषा, राजकमारी और राज्य को वह जैसे स्वीकार कर लेता है, वैसे ही ऋषिराज के उपदेश से प्रभावित होकर इन सभी को छोड़ भी देता है। अपने इन सभी गुणों के कारण वह लोकप्रिय भी हो गया है। सन्तोष ही उनके जीवन का प्रादर्श है । अपने पूर्वजन्म के वृत्तान्त के फलस्वरूप, इस जन्म में बार-बार मत्यु पर विजय प्राप्त करके 'महिंसा परमो धर्म:' का सिदान्त भी अनायास हो पाठकों को समझा देता है; मोर पाठक के हृदय में धीरप्रशान्त नायक के रूप में प्रवेश कर लेता है। विषा-. ___यह उज्जयिनी के राजसेठ गुरणपाल मोर गरणधी की पुत्री है । यह काव्य के नायक सोमदत्त की पत्नी है । काव्य-शास्त्रीय दृष्टि से विषा भी स्वीया नायिका की श्रेणी में प्राती है। अद्भुत सौन्दर्य और व्यक्तित्व विषा अद्भुत सौन्दर्य और व्यक्तित्व की स्वामिनी है । उसका सौन्दयं मम्मी के समान है । यद्यपि उसका नाम विषा है, किन्तु अपने नाम के विपरीत यह है सषा। अपने गुणों मोर सौन्दर्य के कारण वह काग्य के नायक सोमदत्त के संबंधा मनुकूल है । अपने नाम (विषा) के कारण वह सोमदत्त के लिए सौभाग्योदय का कारण बन जाती है । मुषा और सरला सोमदत्त के अद्भुत व्यक्तित्व को देखते ही विषा उसकी पोर पारुष्ट हो जाती है । किन्तु वह अपने मनोभावों को प्रकट नहीं करती है। वह स्वभाव से अत्यन्त सरल है । गुणपाल के किसी षड्यन्त्र का उसको मान नहीं है । बब गणपाल उससे भोजन देने को कहता है तो वह सोमदत्त के लिए माता द्वारा बनाए हुए १. दयोदयचम्पू, श्लोक ३७ के बाद के गद्यभाग। २ वही, ४१२ के बाद का गद्यभाग । ३. वही, ४श्लोक १४ के पूर्व का गवभाग, १४.१६
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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