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________________ महाकवि ज्ञानसागर की पात्रयोजना विषयुक्त लड्ड अनजाने में ही उसे देती है. गुणपाल की मृतप्राय दशा देखकर यह किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है । माता-पितृ-भ्रातृ-भक्ति विषा अपने माता-पिता को प्राज्ञा का सदैव पालन करती है। अपने भाई से भी वह प्रत्यधिक प्रेम करती है। अपने पिता, माता और भाई को प्राशा के अनुसार ही वह सोमदत्त से विवाह करती है। माता की प्राज्ञा से भोजन बनाने में सहयोग देती है। 3 भाई महावल की मृत्यु पर अत्यन्त शोकाकुल हो जाती है। इतना ही नहीं कि वह केवल पारिवारिक जनों की ही माशा मानती हो, वरन् अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् वह राजा वृषभदत्त को भी पिता के समान मानती है और उनकी हर प्राज्ञा को सहर्ष स्वीकार करती है । ईर्ष्या से रहित मधुर व्यवहार वाली जब सोमदत्त राजा की प्राशा से गुणमाला से विवाह कर लेता है, तब भी विषा को कोई मापत्ति नहीं है। यहां तक कि इस विवाह की उसको कोई पूर्वसूचना भी नहीं हैं । सोमदत्त भोर गुणमाला के विवाह के अवसर पर वह अचानक ही राजभवन पहुँच जाती है और हर्षित होकर इस विवाह का अनुमोदन करती है। - राजा विवा से कहते हैं कि वह राजकुमारी को अपनी छोटी बहिन माने । तब विषा कहती है कि राजकुमारी के साथ तो एक पोर एक ग्यारह की कहावत चरितार्थ होगी। इससे मुझे बड़ी मदद मिलेगी। इसलिए इसको पाकर एकादशी तिषि के समान पुण्य-सम्पादनी बन जाऊंगी पोर द्वितीया तिथि के ही समान भद्र माचरण करने वाली हो जाऊंगी। अपने इस कथन के कारण विषा अत्यन्त मादरणीय हो गई है । विषा ने राजकुमारी के साथ अत्यन्त मधुर व्यवहार किया है। काव्य के अनुशीलन से ज्ञात हो जाता है कि उसने कभी अपने सिद्धान्तों को सोमदत्त या राजकुमारी पर नहीं लादा है। उसके मधुर व्यवहार से प्रभावित होकर ही महानल १. दयोदयषम्पू, ६।श्लोक ६ के पूर्व के गद्यभाग। २. वही, ४।२०-२१ ३. वही, ६श्लोक ५ के बाद का गवभाग। ४. वही, श्लोक ३६ के पूर्व के गद्यभाग । ५. 'भो तात, भवतामतीव कृपाऽसावस्ति यतोऽहमधुनकाकिनी सेवानया किलका. दशीव पुग्यसम्पादिनी भविष्यामि, द्वितीयेव च भद्राचरणपरायणा ।' वही, श्लोक १५ के बाद ५वा गद्य भाग ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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