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महाकवि ज्ञानसागर को पात्रयोजना
१८१ भूतमविष्यत् का ज्ञाता और जैनधर्मोपदेशक
सिंहचन्द्र का जन्म पाकर जब भद्रमित्र वैराग्य धारण करता है, उस समय . अपनी माता रामदत्ता की उसके पूर्वजन्म के वृत्तान्तों से अवगत कराता है। उसे जन.धर्म के ऐसे-ऐसे उपदेश देता है कि पाठक को उसकी सराहना करनी हो पड़ती है।' तपस्वी और भक्त
प्राय: प्रत्येक जन्म में भद्रमित्र ने वैराग्य धारण करके तपस्या की है । अपने प्रथम जन्म में वरधर्म नामक मुनिराज का उपदेश सनकर ही भद्रमित्र में दानशीलता का गुण बढ़ गया ।२ प्रपने दूसरे जन्म में पूर्णविधु मुनि के सामीप्य में भदमित्र (सिंहचन्द्र) मुनि बन गया, उसने तप किया। इसी जन्म में उसने अपनी माता को भी प्रबुद्ध किया।' प्रानी कठिन तपस्या के फलस्वरूप सिंहचन्द्र ने अन्तिम ग्रेवेयक में इकतीस सासर को घायु वाले प्रहमिन्द का पद प्राप्त किया। अपने चतुर्थ जन्म में भी भद्रमि र ( बकायुध) जिनेन्द्र भगवान् का भक्त था। प्रौढ़ावस्था माने पर जब उसने देखा कि उसके केश कालिमा को छोड़कर श्वेतिमा धारण कर रहे हैं तो उसके मन में वैराग्य प्रा गया। वह प्रपना सारा राजपाट छोड़कर अपने ही पिता अपराजित जो दिगम्बर मुनि हो चुके थे-के पास पहुँचा । उनके उपदेश से वह भी मुनि बन गया। उसने उपभोग की सारी सांसारिक-वस्तुप्रों का परित्याग कर दिया। निरन्तर तप और साधना में ही उसने अपना ध्यान लगा दिया। अन्त में उस योगिराज ने कैवल्म प्राप्त कर लिया । सत्यषोष
यह सिंहपुर के राजा सिंहसेन का मंत्री है। इसका नाम श्रीभूति है और जाति से ब्राह्मण है । इसने अपने गले में एक छुरी बांध रखी थी; और यह घोषणा कर रखी थी कि-'मैं कभी झूठ नहीं बोलंगा, यदि कभी झूठ बोला तो इसी छरी से प्रात्मघात करूंगा' । उसके इसी प्रचार के कारण इसका नाम 'सत्यघोष' पड़ गया है। प्रसत्यवादी प्रौर कपटी
इसकी प्रसिद्धि तो सत्यवादी के रूप में है, किन्तु है यह झूठ बोलने वालों में
१. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ४।२२-३६ २. वही, ४१६ ३. वही, ४।१८, ४।२२-३६ ४. वही, ५११६ ५. बही, सातवां सर्ग।