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________________ १८० महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक अध्ययन सरल और चतुर भद्रमित्र सरल हृदय वाला युवक है। सिंहसेन के धर्तमंत्री सत्यघोप पर वह एकदम विश्वास कर लेता है और उसे अपनी सारी अजित जमा पूंजी सौंप देता है।' किन्तु जब वह पुनः माता-पिता के साथ सिंहपर लौटता है और सत्यघोष से अपनी धनराशि मांगता है तो सत्यघोप स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर देता है। भद्रमित्र यह सुनकर पहले तो उससे प्रार्थना करता है, किन्तु जब वह नहीं मानता तो उसे नीचा दिखाने की ठान लेता है, अपनी चतुराई से वह इस कार्य में भी सफल हो जाता है। सत्यवादी प्रौर सन्तोषी भद्रमित्र का सत्य पर पूर्ण विश्वास है। अपनी सत्यता से ही वह अपना अजित धन वापिस ले पाता है। राजा के हाथ में रखे हुये रत्नों के मध्य में केवल अपने ही रत्न उठाता है। अन्य रत्नों को भी देखकर उसकी नीयत खराब नहीं होती। दानशील-- अपने रत्न पाकर भदमित्र दानशील मोर सन्तोषी बन जाता है । वह अपनी सम्पदा का मुक्तहृदय से दान करता है। उसकी इस दानशील प्रवृत्ति से उसकी माता चिन्तातुर होकर उसे दान करने से रोकना चाहती है, पर माता की लोभी प्रकृति पर वह बिल्कल ध्यान नहीं देता। यहाँ तक कि माता उससे क्रुद्ध भी हो जाती है, और अगले जन्म में व्याघ्री बनकर उसको खा भी जाती है ।५ संयमी और रागहीन भद्रमित्र में संयम और वैराग्य दोनों ही गण प्राप्त होते हैं। राजा के हाथ में रखे हुए अन्य रत्नों को उठाने में उसका सत्य, संयम एवं सन्तोष बाधक हैं। अपनी माता. सत्यघोष मंत्री इत्यादि किसी ने भी उसके साथ कैसा ही व्यवहार किया हो; वह अपना संयम नहीं खोता : इस काव्य में भदमित्र के चार जन्मों का वृत्तान्त है -भद्र मित्र-सिंहचन्द्र-महमिन्द्र-चक्रायूघ । हम देखते हैं कि अपने इन सभी जन्मों में अन्ततोगत्वा उसके मन में वैराग्य उत्पन्न हो जाता है और वह समस्त सांसारिक सखों को छोड़ देता है। १. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३।२५-२७ २. वही, ३।३४-३० ३. वही, ४१.२ ४. वही, ४६ ५. ४८, ९ ६. वही, ४१८, ७।२३-३३
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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