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________________ महाकवि ज्ञानसागर की पात्रयोजना सुदर्शन के वचनों से प्रभावित - सुदर्शन के जैनधर्मोपदेशामृत को सुनकर और उनका प्राशीर्वाद पाकर देवदत्ता का मोह नष्ट हो जाता है । मन में विरक्ति उत्पन्न हो जाने के कारण यह सुदर्शन मुनिराज से दीक्षा लेकर प्रायिका व्रत को धारण कर लेती है ।" देवदत्ता में कामचेष्टायें, वासनायुक्त कथन इत्यादि तो इसके व्यवसाय अनुरूप ही हैं । इसमें एक ही दुर्गुण विद्यमान है, वह यह कि सुदर्शन को डिगाने में उसने पण्डिता दासी की कुबुद्धि का उपयोग किया, अपने मस्तिष्क का नहीं । अन्य स्त्रियों (कपिला और प्रभयमती) की प्रपेक्षा यह भाग्यशालिनी है, तभी तो अपने अपराध के मार्जन हेतु यह सुदर्शन से क्षमायाचना करके त्याग और वेराग्य का मार्ग अपना लेती है । श्रीसमुद्रदत्तचरित्र के पात्र - 'भद्रमित्र १७६ श्रीपद्मखण्डनगर में रहने वाले वैश्यवर सुदत्त और उनकी पत्नी सुमित्रा के पुत्र का नाम भद्रमित्र की । प्रपने गुणों के कारण वह बालक सत्पुरुषों में प्रशंसनीय है। अच्छी-अच्छी बातों को वह शीघ्र ही ग्रहण करने वाला है । काव्यशास्त्रीय दृष्टि से वह 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' महाकाव्य का घीर-प्रशान्त नायक । कवि ने उसके चार जन्मों का चित्र इस काव्य में खींचा है । स्वावलम्बी प्रौर कर्मठ भद्रमित्र अपने साथियों के बीच एक ऐसी कथा सुनाता है जिसमें स्वावलम्बन की शिक्षा मिलती है । उस कथा को सुनते ही भद्रमित्र अपने साथियों के साथ स्वयं घनाजंन करने का निश्चय कर लेता है । अपने निश्चय को वह अपने पिता के समक्ष प्रस्तुत कर देता है। उसके निश्चय को सुनकर जब उसके माता-पिता, उसके दूर जाने की बात से दुःखी होकर उसे रोकना चाहते हैं तो वह भावुक न होकर पिता का ध्यान कर्तव्य की ओर लगाता है और घर से रत्नद्वीप जाकर वह रत्नादि प्राप्त भी कर लेता है । ३ विदा ले लेता है । विनम्र और तार्किक - भद्रमित्र एकमात्र पुत्र होने पर भी प्रपने माता-पिता के समक्ष विनम्र होकर ही प्रपनी इच्छा प्रस्तुत करता है। उसके धनवान् पिता जब उसके धनार्जन की चेष्टा को अनावश्यक बताते हैं, तब अपने तर्कों से वह पिता का मुंह बन्द कर देता है । १. सुदर्शनोदय ६।३४ २. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३।१ ३. बही, ३।२ - १७
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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