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महाकवि ज्ञानसागर के काम्य-एक अध्ययन
प्रतिशोषमावनावती
सुदर्शन के निर्दोष हो जाने पर जब रानी प्रात्मघात कर लेती है, तब पण्डितादासी चम्पापुर छोड़कर पाटलिपुत्र पहुँच जाती है। वहां रहने वाली एक देवदत्ता वेश्या की सेवा करने लगती है, और उसे सब वृत्तान्त सुना देती है। यह उसे सदर्शन के व्रत को भंग करने के लिए प्रेरित करती है। पर असफलता मिलने पर अन्त में देवदत्ता के साथ-साथ वह भी प्रायिका-व्रत धारण कर लेती है।'
इस प्रकार पण्डितादासी में हमें स्वामिभक्ति, कुशलता, बुद्धिमत्ता इत्यादि गुणों के साथ ही धूर्तता, प्रतिशोध की भावना इत्यादि दुर्गुणों की भी झांकी देखने को मिल जाती है। जहां अपनी स्वामिभक्ति से यह पुरस्करणीय है वहां सुदर्शन जैसे निर्दोष व्यक्ति को बार-बार पीड़ा पहुंचाने के कारण दण्डनीय भी है । देवदत्ता वेश्या
यह पाटलिपुत्र में रहने वाली एक वेश्या है। रानी अभयमती की दासी चम्पापुर से भागकर इसी की शरण में प्राती है । विवेकहीन
यह विवेकहीन स्त्री है। यह सुदर्शन को अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि पण्डितारानी के कहने पर पथभ्रष्ट करने की चेष्टा करती है। पण्डितादासी से सुदर्शन का परिचय पाकर उसे घर ले पाती है । कामुकी
यह सुदर्शन के यतिवेश की हंसी उड़ाती है, और बार-बार उसके सौन्दर्य की प्रशंसा करती है । सुदर्शन के धर्मसम्मत वचनों से अप्रभावित रहकर अपनी कामचेष्टामों से उसे प्रभावित एवं उत्तेजित करने में प्रयत्नशील हो जाती हैं। 3. सुदर्शन की बढ़ता से प्रभावित
.. देवदत्ता के तीन दिन तक प्रयत्न करने पर भी सुदर्शन अविचलित ही रहते है, तब यह उनकी दृढ़ता से प्रत्यन्त प्रभावित भी हो जाती है, उनकी सहनशीलता, नम्रता, बुद्धिमत्ता, परोपकारपरायणता प्रादि गुणों की स्तुति करके उनसे क्षमायाचना करती है और उनसे धर्मोपदेश करने की याचना करती है। १. सुदर्शनोदय, ६७४ २. वही, ९।१२-१३ ३. वही, ९।१४-१६, २७ और उसके बाद के गीत, एवं २८ ४. 'इत्येवं पदयोदयोदयवतोननं पतित्वाऽथ सा
सम्प्राहाऽऽदरिणी गुणेषु शमिनस्त्वात्मीयनिन्दादशा। स्वमिस्त्वय्यपराद्धमेवमिह यन्मोहान्मया साम्प्रतं मन्तव्यं तदहो पुनीत भवता देयं च सूक्तामृतम् ॥
-सुदर्शनोदय ६३१