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महाकविमानसागर के काम्य-एक अध्ययन
अभवमती को कुटिलता पर ध्यान नहीं देता। अपनी पत्नी से प्रेम के कारण मोर बल्दबाजी से यह किसी और की बात नहीं सुनता । इसलिए अभयमती के प्रलाप को सुनकर यह विन सोचे-बिचारे सुदर्शन को अपने सेवकों द्वारा चाण्डाल के पास भेज देता है।
चाण्डाल के प्रहार के निरर्थक हो पाने पर राजा स्वयं ही सुदर्शन को मारने की इच्छा से घटनास्थल पर पहुंच जाता है। किन्तु प्राकाशवाणी से वास्तविकता का ज्ञान होते ही यह सुदर्शन को महिमा से परिचित हो जाता है, उससे क्षमा मांगता है, यहां तक कि अपना राज्य भी उसे सौंपने को तैयार हो जाता है।
एक नप में स्पिरमतिता एवं विवेकशीलता का जो गण होता है, उसका धात्रीवाहन में पूर्ण प्रभाव है । गम्भीरता से विचार करने की इसमें शक्ति नहीं है। यह कभी किसी के पक्ष में हो जाता है और कभी किसी के। इसी कारण यह उचित न्याय करने में भी असमर्थ है। कपिला ब्राह्मणी
यह चम्पापुर में रहने वाले कपिल ब्राह्मण को स्त्री है। यह कामवासना से बग्ध रहती है । अन्य विघ्नबाधामों के समान सुदर्शन के साधना-मागं में यह भी बाषा-स्वरूपा ही है। कामुकी
मन्दिर से लौटते हुए सुदर्शन के रूप-सौन्दर्य पर मोहित हो जाती है । अपनी दासी से छत-पूर्वक सुदर्शन को घर बुलवाती है । तत्पश्चात् उससे प्रणयनिवेदन करती है। प्रतिशोषमावनावती
वसन्तोत्सव में सभी नगरवासियों के साथ यह भी बन-विहार के लिए पहुँचती है । सुदर्शन की पत्नी मनोरमा को देखकर यह रानी अभयमती से उसका परिचय पूंछती है। रानी अभयमतो से मनोरमा मौर सुदर्शन का परिचय पाकर अपने को ठगा जानकर यह प्रथम तो लज्जित होती है और फिर रानी द्वारा दिए मए उलाहनों की चिन्ता न करके रानी को सुदर्शन को वश में करने के लिए चुनौती दे देती है।
१. सुदर्शनोग्य, ७३६ २. वही, ८-५-७, १०, १२-१३ ३. बहो, ५॥१.२० ४. वही, १३-१५