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महाकवि ज्ञानसागर को पात्रयोजना
१७५ यह उसको लेकर मन्दिर जाता है।' पुत्र प्राप्ति हो जाने पर भी जिनदेव के मन्दिर जाकर उसका पूजन करता है । इसी अवसर पर नागरिकों को प्रचुर मात्रा में धन देता है । जन-मुनियों पर प्रास्था
___ सेठ वृषभदास जिन मुनियों के प्रति प्रतिश्रद्धावान् हैं। पत्नी के द्वारा देखे गए स्वप्नों का वृत्तान्त जानने के लिए यह एक मुनि की ही शरण में जाता है, मोर पौर विनय पूर्वक प्रपना अभिप्राय उनसे कहता है । सुदर्शन के विवाह के पश्चात् नगर के उपवन में माए हुए ऋषिराज का दर्शन करने के लिए सपरिवार प्रस्थान करता है । उनके धर्मोपदेश से प्रभावित होकर दैगम्बरी दीक्षा ग्रहण कर लेता है।
स्पष्ट है कि सेठ वृषभदास स्नेहशीन पति, पिता एवं एक धार्मिक नागरिक
जिनमति
यह सेठ वृषभदास की पत्नी है। यह सुकुमार देहयष्टि वाली, सौन्दर्यसम्पन्ना, सरल, पतिव्रता, प्रतिथि वत्सला, आभूषण सुसज्जिता, काले केशपाशों से युक्त, मच्छे कार्य करने वाली, मधुरभाषिणी भोर जिनदेव की परम भक्त है।' इसे सुदर्शन की माता होने का सौभाग्य प्राप्त है ।। श्रेष्ठ पुरुषों की माता के समान ही इसे भी पुत्र के जन्म से पूर्व दिव्य स्वप्न दिखाई देते हैं। इस प्रकार कुलीन स्त्रियों के गुणों से यह विभूषित है । पात्रीवाहन
यह अंग देश में स्थित चम्पापुरी का शासक है। यह अनुपमेय, प्रतापशाली, नीतिज्ञ, युद्धवीर, प्रजावत्सल और अत्यधिक दानशील है। कुटिला रानी अभयमती इसी की पत्नी है । यह भगवान महावीर का ही समकालिक है। अपनी पत्नी पर . इसका प्रत्यधिक विश्वास है और यह सबसे अधिक प्रेम भी करता है। सम्भवतः
१. सुदर्शनोदय, २।२४ २. वही, ३१५ ३. वही, ३६ ४. बही, २।२२-३४ ५. वही, ४११४ ६. वही, २।४-६ ..७. वही, २०१०-१६
८. वही, ११३८-४०, ४५