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________________ १७४ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन अपमानित करवाने में भी उसने कोई कसर न रखी।' . सुदर्शन के निर्दोष सिद्ध हो जाने पर उसने निन्दा के भय से प्रात्म-हत्या कर ली मोर पाटलिपुत्र में वह व्यन्तरी देवी हो गई। इस योनि में प्राकर भी उसने तपस्वी सुदर्शन को नहीं छोड़ा और उसे भौति-भांति के कष्ट दिये । इस प्रकार रानी प्रभयमती कुटिला स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करने वाली है। सेठ वषमदास- यह चम्पापुर का प्रसिद्धिप्राप्त वैश्यवर है। सद्गुण, चतुराई, चिन्तनशीलता दानशीलता इत्यादि गुण इसमें प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं। यह काव्य के नायक सुदर्शन का पिता है। पत्नी एवं पुत्र से प्रेम रखने वाला सेठ वृषभदास को अपने पुत्र मोर पत्नी से अत्यधिक प्रेम है। मुनि के मुख से सन्तान-प्राप्ति के विषय में सुनकर इसे प्रत्यधिक हर्ष होता है; और पत्नी के गर्भवती होने पर यत्नपूर्वक उसकी रक्षा करता है। अपने यहां पुत्रोत्पत्ति का समाचार जानकर हर्षित होता है । वात्सल्य से इसका हृदय भर जाता है। प्रसूतिका-गृह में जाकर माता एवं शिशु का गन्धोदक से संस्कार करता है । पुत्र के सौन्दर्य को देखते हुए यह उसका नाम 'सुदर्शन' रख देता है। उत्तरदायी पिता सुदर्शन पोर मनोरमा के परस्पर प्रेम व्यवहार को जानकर यह पुत्र के लिए चिन्तित हो जाता है। मनोरमा के पिता सागरदत्त की प्रार्थना पर यह प्रसन्नतापूर्वक मनोरमा और सुदर्जन के विवाह की स्वीकृत दे देता है। जिनदेव का मक्त और दानशील ___सेठ वृषभदेव की जिनदेव पर पूर्ण प्रास्था है। पत्नी के स्वप्न देखने पर १. "पावजताऽऽव्रजत त्वरितमितः भो द्वास्थजनाः कोऽयममितः । मुक्तकञ्चुको दंशनशीलः स्वयमसरलचलनेनाश्लीलः । भुजगोऽयं सहसाऽभ्यन्तरितः पावजताऽऽव्रजत त्वरितमितः ॥१॥ परिरूपोऽस्माकं योऽप्यमनाक्कुसमन्ध्यताभिसत मनाः (१)। कामलतामिति गच्छत्यभितः पावजताऽऽव्रजत त्वरितमितः ॥२॥ -सुदर्शनोदय, ७।श्लोक ३४ के बाद का गीत २. वही, ८।३५ ३. वही, २१३७-४६ ४. वही, ३४-५, ७, १२, १५ ५. वही, ३४६-४७
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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