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________________ महाकवि ज्ञानसागर की पात्रयोजना सुदर्शन की प्रशंसक— उद्यान-विहार के लिए एकत्र लोगों में कपिला, प्रभयमती इत्यादि स्त्रियां भी हैं । कपिला मनोरमा का परिचय जानना चाहती है तो रानी प्रभयमती उसे राजसेठ सुदर्शन की बताती है । वह सुदर्शन को दर्शनीय पुरुषश्रेष्ठ बताती है । ' I कान्मारध सुदर्शन से समागम की इच्छक रानी वासना में इतनी मन्धी हो जाती है कि उसे अपनी भौर अपने पति की प्रतिष्ठा का जरा भी ध्यान नहीं रहता । स्पष्ट है कि बहु मात्र प्रपने पति से सन्तुष्ट नहीं है, वह प्रपनी पण्डिता दासी से सुदर्शन को महल में ले माने का प्राग्रह करती है । पण्डिता दासी उसे उसकी स्थिति समझाती है कि एक राजमहिषी की ऐसी चेष्टा ठीक नहीं। साथ ही वह सीता जैसी पतिव्रता स्त्रियों का प्रादर्श उसके समक्ष रखती है, किन्तु कामान्ध, हठी रानी उसकी किसी बात से प्रभावित नहीं होती, वह पुनः पुनः पण्डिता दासी से येन केन प्रकारेण सुदर्शन को ले माने का प्राग्रह करती है, विवश होकर पण्डिता को उसका प्राग्रह मानना ही पड़ता है। १७३ निर्लज्ज - fosता दासी युक्तिपूर्वक सुदर्शन को रानी के पास ले प्राती है मीर उसको पलंग पर लिटा दिया जाता है। रानी हर्षित होकर सुदर्शन के समक्ष अपनी संभोगइच्छा प्रकट कर देती है । निर्लज्जता के साथ-साथ वह शरीर के वस्त्रों को उतारते हुए सुदर्शन की कामाग्नि को प्रज्वलित करने की चेष्टा करती है। दुराचारिणी - सुदर्शन को डिगाने में प्रसमर्थ होकर जब रानी प्रभयमती निराश हो जाती है, तो वह पण्डिता दासी से उसको कक्ष से बाहर करने का उपाय पूंछती है । पण्डिता दासी के समझाने पर जोर-जोर से हल्ला मचाकर समस्त परिजनों को एकत्र कर लेती है । जिस सुदर्शन से समागम की उसने इच्छा की थी, उसको १. सुदर्शनोदय ६।५ २. बही, ६।१९ ३. वही, ६।२०- २३, एवं २३ के बाद का गीत । ४. वही, ६।२९ एवं साथ का गीत । ५. बही, ७।१६-२०
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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