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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन का संस्कार भी सहायक है । वह पूर्वजन्म में भी, जब सुदर्शन भीम पा, उसकी पत्नी थी। यह उसके पातिव्रत्य का ही प्रभाव है कि सुदर्शन अन्य किसी स्त्री पर मासक्त नहीं होता । जब सुदर्शन उसके समक्ष मोक्षानुगामी होने की इच्छा प्रकट करता है, तो वह भी उसी मार्ग का अनुसरण करती है और आर्यिका बनने का निश्चय कर लेती है। वह सदैव पति के अनुकूल रहती है और उसकी इम्यामों का प्रादर करती है। वैराग्यमावना से युक्त
___ सत्पथगामिनी मनोरमा ने पूर्वजन्म में एक बार एक धोनी की पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इस जन्म में प्रायिका-संघ की संगति में वह क्षुल्लिका हो गई पौर उच्चकुलीन स्त्रियों के ही समान पूज्या हो गई। प्रत्यावश्यक वस्त्र पोर पात्रों के अतिरिक्त उसने अन्य सभी वस्तुओं का परित्याग कर दिया। अनेक गणों से सम्पन्न वह उपवास इत्यादि भी रखती थी, और हिंसा से सर्वथा दूर थी। इस जन्म में भी मनोरमा वैसी ही निर्मल अन्तःकरणवाली है। पूर्वजन्मों के संस्कारवा पति के वैराग्य धारण करते ही वह स्वयं भी प्रायिका बनने का निश्चय कर लेती है। मनोरमा के निश्चय से सुदर्शन का प्रात्मबल और भी बढ़ जाता है। प्रायिका बनकर मनोरमा सारे प्रपंचों को त्याग देती है।"
संक्षेप में मनोरमा.प्रपने सौन्दर्य, पतिभक्ति, मधुरव्यवहार, सरमता, संतोष इत्यादि गुणों के कारण ही स्त्रियों में श्रेष्ठ हो जाती है, और प्रभयमती, कपिला, इत्यादि को पराजित करके पाठक के हृदय में नायिका के रूप में स्थान पा लेती है। प्रमयमती
यह चम्पापुर के राजा धात्रीवाहन की रानी है । अपने रूप, सौन्दर पोर पातुर्य से यह अपने पति को रिझाने में समर्थ है। साथ ही कुटिलता भी इसमें कूट-कूट कर भरी हुई है। यह कामान्य है और अपने दुराचरण से काग्य की सम. नायिका भी है।
१. सुदर्शनोदय, ४।२८-२९, ३७ २. "प्राणाधार भवांस्तु मां परिहरेत्समवाञ्छया निवते: किन्वानन्दनिबन्धनस्त्वदपरः को मे कुलीनस्थितः । नाहं त्वत्सहयोगमुज्झितमलं ते या गतिः सेव मेस्त्वार्याभूयतया चरानि भवतः सान्निध्यमस्मिन् क्रमे ॥"
. -सुवर्शनोदय, ८।२७ ३. वही, ४१२८-३७ ४. वही, ८।३३.३४