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________________ महाकवि ज्ञानसागर को पात्रयोजना ... १७१ ही विश्वास करके उसके घर चल पड़ता है। स्त्रियों के दुराचरण के प्रतिशोष की भावना उसके मन में नहीं पाती। वह इतना लज्जाशील है कि अपने मोर मनोरमा के प्रेम का निवेदन स्वयं अपने माता-पिता के समक्ष नहीं कर पाता। मित्रों के माध्यम से ही उसके पिता उसकी मनोदशा जान पाते हैं। राजा धात्री. वाहन जब अपनी रानी के झूठे प्रपञ्च पर विश्वास करके उसको दण्डित करना चाहते हैं, तब भी वह विनम्र होकर अपने मौन से उनकी प्राज्ञा. स्वीकार कर लेता है । प्रतएव सुदर्शन मधुर व्यवहार वाला, लोकप्रिय, नवयुवावस्था में विद्यमान, तेजस्वी, परमधार्मिक एवं पवित्र प्राचरण करने वाला है । मनोरमा यह चम्पापुर में निवास करने वाले सागरदत्त नामक सेठ की पुत्री है और 'सुदर्शन' काव्य के नायक सुदर्शन की पत्नी है। अत: यह इस काव्य की नायिका है। काव्य-शास्त्रीय दृष्टि से इसे स्वीय नायिका की श्रेणी में रखा जा सकता है। सौन्दर्यशालिनी मनोरमा का सौन्दर्य नगर में प्रसिद्ध है। उसके इसी सौन्दर्य पर सुदर्शन मुग्ध हो जाता है और उससे प्रेम करने लगता है। सदर्शन के पूर्वजन्म की कथा बताने वाले ऋषिराज भी उसके सौन्दर्य की प्रशंसा करते हैं। उसके सौन्दर्य मोर सौभाग्य का वर्णन रानी प्रभयमती भी करती है ।५ कपिला भी उसके सौन्दर्य की मोर प्राकृष्ट है । पतिव्रता मनोरमा सुदर्शन को प्रथम दर्शन से ही प्रेम करने लगती है । मित्रों से समाचार जानकर जब वृषभदत्त मनोरमा और सुदर्शन का विवाह कर देते हैं, तब तो मनोरमा पूर्णरूपेण ही उसकी हो जाती है। उसके पातिव्रत्य में उसका पूर्वजन्म १. सुदर्शनोदय, ३४२ २. वही, ७३६, ८।४-८ ३. 'नायकसामान्यगुणभवति यघासम्भवर्यक्ता ।। .. विनयावावियुक्ता गृहकर्मणा पतिव्रता स्वीया । -साहित्यदर्पण, ३।६८-६६ ४. देवीयं ते महाभाग समा समतिलोत्तमा ।' ___ -- सुदर्शनोदय, ४।३८ का उत्तरार्ध । ५. वही, ६५ ६. वही, ६४
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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