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________________ महाकवि ज्ञानसागर को पारयोजना श्री, ह्रो देवियाँ ___ भगवान महावीर के गर्भावतरण के पश्चात् देवराट इन्द्र की प्राज्ञा से श्री, ह्री इत्यादि देवियां माता प्रियकारिणी की सेवा हेतु पाती हैं। राजा की अनुमति पाते हो रानी की सेवा में जुट जाती हैं। यह देवियाँ भगवान् महावीर के प्रति हृदय में भक्ति को धारण करती हैं। अपने आराध्य देव की माता की सेवा करके वे अपने को धन्य समझतो हैं । माता के साथ-साथ ही भगवान् की पूजा भी कर लेती हैं। ये अत्यन्त प्राज्ञाकारणी हैं। रानी प्रियकारिणी की प्रत्येक प्राज्ञा शिर झका कर स्वीकार कर लेती हैं. प्रौर पुन: नवीन प्राज्ञा की प्रतीक्षा करती हैं। वे रानी को सेवा निष्काम भाव से करती हैं। उन्हें सेवा के बदले में कोई पारिश्रमिक नहीं लेना है । बस, उनका काम तो इन्द्र की प्राज्ञा को पूरा करना है । ये सभी देवियाँ अत्यन्त कायं कुशल हैं। रानी को स्नान कराने, उसकी साज सज्जा करने, उसे सुस्वादु भोजन कराने, गीत-नत्य-वाद्यादि से उसका मनोरञ्जन करने, उसे नमण कराने, उसके साथ धर्मवार्ता करने इत्यादि सभी कार्यों में पारंगत हैं । व्यवहारकुशलता भी इनका गुण है। ये रानो से अत्यन्त मधुर मौर विनम्र व्यवहार करती हैं। उसको कभी अकेला नहीं छोड़ती। उसकी सेवा में प्रहमहमिकया भाग लेती हैं। रानी की इच्छाप्रो में कोई बाधा उपस्थित नहीं करतीं। अपने सुन्दर व्यवहार से शीघ्र ही ये देवियां माता को अनुकूल करने में सफल हो गयीं, और उसके हृदय में इन्होंने अपने लिए स्थान भी बना लिया। सुदर्शनोदय के पात्र :सुदर्शन सुदर्शन वैश्यकुलभूषण है । उसके पिता नगर के प्रतिष्ठित सेठ हैं। उसकी माता जिनमति वास्तव में ही जिनमति भगवान् के प्रति बुद्धि रखने वाली है। अधिक सौन्दर्यशाली होने के कारण हो पिता ने उनका नाम सुदर्शन रखा है। १. बीरोदय, ५।४, ६, १६ २. बही, ५१५, ७ ३ वही, ५।८-१६, २५, २६, ३३-४२ ४. सुदर्शनोदय, २०४ ५. 'सुतदर्शनतः पुराऽसको जिनदेवस्य ययौ सुदर्शनम् । इति चकार तस्य सुन्दरं सुतरां नाम तदा सुदर्शनम् ॥' वही, ३३१५
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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