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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन ऐसे ही योग्य शासक को, भगवान् महावीर ने उनके घर में जन्म लेकर पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त कराया है। भगवान् को पुत्र रूप में प्राप्त करके सिद्धार्थ अधिक हर्षित होते हैं। उनका लालन-पालन बड़े चाव से करते हैं। अपने पुत्र की हर इच्छा पूरी करने में सचेष्ट रहते हैं। उत्तरदायी पिता की तरह युवावस्था प्राने पर पुत्र का विवाह भी करना चाहते हैं। किन्तु पुत्र को वैराग्य भावना को देखकर, उसके.ज्ञान और उसके प्रति प्रतिशय स्नेह के कारण उससे पुनः पुनः गृहस्थ जीवन विताने हेतु हठ भी नहीं करते ।' प्रत: राजा सिद्धार्थ ज्ञान, संतोष, धर्मशीलता इत्यादि गुणों के समूहरूप हैं। प्रियकारिणी ___ यह राजा सिद्धार्थ की पट्टमहिषी हैं। इन्हें महावीर को माता होने का सौभाग्य प्राप्त है । यह सौन्दर्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व से सम्पन्न हैं। यह रानी अपने मधुर व्यवहार से सबको माकर्षित करने वाली हैं। सभी याचकों की कामना पूर्ण करने वाली हैं । इनका मुख चन्द्र के समान सुन्दर है। इनके शरीर के अंग श्रेष्ठ उपमानों के उपमेय हैं। इनके नेत्र चंचल और करतल मंगे के समान लाल हैं। यह सुन्दर चेष्टानों और सौन्दर्य से राजा सिद्धार्थ के मन को जीतने में पूर्ण समर्थ हैं। इनकी भुजलतामों में कमलनाल की सी कोमलता है, बाल अत्यन्त घने हैं, गमा शंख के समान है, जंघायें पुष्ट और सुन्दर हैं, तथा स्तनद्वय पर्याप्त समुन्नत हैं। इनमें विद्या मोर बुद्धि दोनों विद्यमान हैं । विनम्रता, सरलता, निर्मलता, दूरदशिता इत्यादि गुण इनमें अतिशयता से विद्यमान हैं । यह जैनधर्ममतावलम्बिनी हैं। साथ ही यह जैन-धर्म के नियमों मोर पालनीय कर्तव्यों को अच्छी तरह जानती भी हैं । अपनी सेवा के लिए आई हुई देवियों के साथ यह मधुर व्यवहार करती हैं। उन्हें समय-समय पर जन-धर्म का उपदेश भी देती हैं । इनके गुणों से प्राकष्ट देवियाँ इनकी सेवा बड़ी तत्परता से करती हैं। __ यह पतिव्रतामों में अग्रगण्य हैं। अपने मन की कोई बात पति से नहीं विपाती हैं । यह पति को प्रसन्न करना भी जानती हैं। रात्रि में देखे गए सोलहस्वप्नों को यह प्रातःकाल होते ही अपने पति को बता देती हैं। भगवान् को पत्र रूप में पाकर यह अपने को धन्य समझती हैं । इस प्रकार यह श्रेष्ठ स्त्रियों में अपने गुणों से मूर्धन्य हैं। १. वीरोदय, ८।२२-४६ २. वही, ३॥१५-३६ १. वही, २२१-३४ ४. वही, ५-१८, ३५-४२ ५. वही, ४१२७-३६ ... वही, ४१६२, ६।४०
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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