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________________ महाकवि ज्ञानसागर की पात्रयोजना १६.३ को हुआ था । भगवान् महावीर लोकनायक तो हैं ही, साथ ही 'वीरोदय' महाकाव्य के नायक भी हैं ।' काव्यशास्त्रीय दृष्टि से भगवान् को घीरशान्त श्रेणी में रखा जा सकता है । प्रभावशाली व्यक्तित्व भगवान् महावीर प्रद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी हैं। प्रभी उनका गर्भावतरण हो हुधा है कि सारी पृथ्वी हरी-भरी हो गई है । महापुरुषों के जन्म से पहले उन्हें जन्म देने वाली माताएं कुछ दिव्य स्वप्न देखती हैं, ऐसे ही सोलह स्वप्नों को महावीर की माता प्रियकारिणी ने देखा था । यह भगवान् का ही प्रभाव है कि उनके गर्भावतरण के पश्चात् उनकी माता की सेवा के लिए इन्द्र ने श्री, ही प्रादि देवियों को भेज दिया । देवराट् इन्द्र भगवान् के जन्म पर उनके अभिनन्दन के लिए, ग्रन्थ देवगणों के साथ भगवान् की जन्मभूमि कुण्डनपुर पहुँच जाते हैं प्रोर सुमेरु पर्वत पर ले जाकर भगवान् का अभिषेक करते हैं।" भगवान् के बढ़ते हुए सौन्दर्य को देखकर ही उनके पिता ने उनका नाम 'श्रीवर्धमान' रख दिया । उनका शरीर पूर्ण स्वस्थ था । युवावस्था की प्रोर बढ़ते हुए भगवान् महावीर में हमें ढ़ता, त्याग और संयम की त्रिवेणी देखने को मिलती है। वह पिता द्वारा किए गए विवाह के प्रस्ताव को ढ़ता से प्रस्वीकृत कर देते हैं। कोन सा युवक होगा, जो विवाह से अपने को विमुख रख सके ? पर महाबीर तो त्याग और संयम की मूर्ति हैं । उनके पिता राजा सिद्धार्थ को भी उनके इस दृढ़ निश्चय के भागे झुकना ही पड़ता है ।" उनसे द्वेष रखने वाला गौतम इन्द्रभूति भी अपने को उनके चरणों में समर्पित कर देता है ।" यह नहीं, उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर न जाने जितने लोग जैन मतावलम्बी बन जाते हैं । १. नेता विनीतो मधुरस्त्यागी दक्षः प्रियंवदः । रक्तलोकः शुचिर्वाग्मी रूढवंशः स्थिरो युवा || बुद्धयुत्साहस्मृतिप्रज्ञाकलामानसमन्वितः । शूरो दृढश्च तेजस्वी शास्त्रचक्षुश्च धार्मिकः ।। बही, २४ वीरोदय, २।२७, ३४-६१ २. ३. ४. वही ५।१-८ ५. बही, ७१६-३८ ६. वही, ८६ ७. वही, ८।२२-४५ ८. वही, ८।४६ ४. वही, १३०३२ - दशरूपक, २११-२
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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