________________
१६४
बेराग्य भावना
राजकुमार होते हुए भी भगवान महावीर में त्याग भीर वैराग्य वैसे ही विद्यमान हैं जैसे वस्त्र में तन्तु । युवक महावीर के समक्ष एक मोर पिता द्वारा प्रस्तुत विवाह का प्रस्ताव है और दूसरी प्रोर सांसारिक प्राणियों के दुःख से उत्पन्न राग्य का प्रागमन है । ऐसी स्थिति में भगवान् किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं होते । वह स्थिरहृदय से भोग का मार्ग छोड़ कर त्याग प्रोर वेराग्य का मार्ग चुन लेते हैं । ' प्राणियों में शान्ति के प्रभाव धौर समाज में वर्गवाद तथा विषमता के साम्राज्य ने उन्हें त्याग की घोर प्रग्रसर कर दिया। संयम का प्रवलम्बन लेकर भगवान् ने समस्त सांसारिक सुखों को तिलांजलि दे ही दी । २
महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक प्रध्ययन
तर्करणा और चिन्तनशीलता
भगवान् महावीर अपने पिता के विवाह सम्बन्धी प्रस्ताव को ठुकराते समय अद्भुत तर्कणाशक्ति का परिचय देते हैं। स्त्री को वह सबसे बड़ा बन्धन मानते हैं, उनकी शक्ति से उनके पिता भी प्रभावित होते हैं । चिन्तनशील तो इतने हैं कि संसार की दुःखमयी दशा को देखकर उसके दुःख को कम करने के प्रतिरिक्त फिर अन्य किसी वस्तु के बारे में नहीं सोचते । चिन्तन करते-करते अपने पूर्वजन्म का भी उन्हें ज्ञान हो जाता है । तब अपने पूर्वजन्म में किए गए दुष्कृत्यों से उत्पन्न पाप को दूर करने के लिए वह प्रात्मशुद्धि की ओर प्रग्रसर हो जाते हैं । ४ निष्कपट व्यवहार पोर नम्रता-
भगवान् में ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध इत्यादि दुर्गुणों का लेशमात्र भी नहीं है । उन्होंने पनी नम्रता भोर विवेकशीलता से हो सबको जीत लिया है। उनके साथ कोई भी कैसा ही व्यवहार क्यों न करे, पर उनका प्राचरण सबके प्रति freeपट ही रहता है । गौतम इन्द्रभूति जो उनसे द्वेष रखता है, उसके साथ भी वह नम्रता का व्यवहार करते हैं । प्रतिशोध की भावना का उनके मन में कोई स्थान नहीं है ।
'तपस्वी
भगवान् के प्रात्मचिन्तन से अपने पूर्वजन्म में किए गए अच्छे बुरे कार्यों का जब ज्ञान होता है, तव ब्रात्मशुद्धि के उपायरूप में उप्रतपश्चरण करते हैं। उन्हें अपने शरीर से जरा भी ममता नहीं है। सभी प्रकार के प्राकृतिक परिवर्तनों को
१. वीरोदय, ८।२१-४५
२. वही, ६।१-१७, १०1१-२६
३. वही, १३०, ४६
४. वही, १००३८, १११-४४ ५. वही, १३।२५-२९