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________________ महाकवि मानसागर को पात्रयोजना देता है । किन्तु प्रकीर्ति कोषाविष्ट होकर मंत्री के उपदेश से जरा भी प्रभावित नहीं होता। प्रात्मविश्वास में कमी मर्ककीति का अपनी ही बुद्धि पर अविश्वास है । स्वयंवर में पराजित होकर वह स्वयं जयकुमार से वैर नहीं ठानता। किन्तु अपने सेवक के उत्तेजित करने पर ही इसे जयकुमार के प्रति क्रोध पा जाता है।' बम्मी एवं मदोन्मत पकीर्ति की इच्छा का समाचार काशीराज प्रकम्पन के पास भी पहुंचता है । तब वह अपना एक दूत इसको शान्त करने के लिए भेजते हैं। पर यह टस से मस नहीं होता और बयकमार से युद्ध की तैयारी करने लगता है । फलस्वरूप इसका जयकुमार से घोर युद्ध होता है । युद्धवीर जयकुमार के समक्ष इसका गर्व चूर हो जाता है और जयकुमार इसको बन्दी बना लेते हैं। इसे अपने चक्रवर्ती के पुत्र होने का गर्व है। देशकाल के मान एवं स्वामिमान से रहित . जयकुमार प्रकीति के पिता के सेनापति हैं, प्रतएव उनके शोर्य में कोई संदेह नहीं होना चाहिए । इतना जानते हुए भी यह उनसे युद्ध करने को तैयार हो जाता है । मदोन्मत पर्ककोति समझता है कि सुलोचना का विवाह उसी से होना चाहिए पा, प्रतः देशकाल का विचार किये बिना ही विवाह के मांगलिक अवसर पर बाषा उपस्थित कर देता है। इसके मन में स्वाभिमान का पूर्णरूपेण प्रभाव है। पराजित एवं अपमानित होने के बाद भी यह काशीराज प्रकम्पन की दूसरी पुत्री पक्षमाला से विवाह करने को तैयार हो जाता है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि यपि प्रकीति भरतचक्रवर्ती का पुत्र है, तथापि दम्भ, मदोन्मत्तता, कोष, वैर, ईर्ष्या, अविश्वास इत्यादि इसमें प्रचुर मात्रा में हैं। अपने इन दुर्गुणों के कारण ही यह प्रेम के क्षेत्र में तो पराजित होता ही है, युद्धक्षेत्र में भी पराजय ही प्राप्त करता है । इसकी इन विशिष्टतामों को देखकर इसे काव्य का सलनायक कहा जा सकता है।' १. जयोग्य, १२-४४ २. बही; ७१-७ १. वही, ७।५५-११५, ८।१-१४ ४. वही, ७४५-४६ ५. वही, १९ 1. मुन्धो पीरोइतः स्तम्बः पापद्व्यसनी रिपुः ।' -शरूपक, २९ का उत्तरार्ष।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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