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________________ १६० महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन वोर और पतिव्रता पार्यललनामों के समान सुलोचना पतिव्रता स्त्री है। अपने गुणों से इसने जयकुमार को अपने वश में कर लिया है। जन चक्रवर्ती भरत के पास से लौटकर पुनः जयकुमार गंगानदी के तट पर पहुँचते हैं, तब एक देव मकर का रूप धारण करके जयकुमार के हाथी पर आक्रमण करना चाहता है । इस समय जयकुमार को विपत्ति में देखकर यह 'नमोंकार' मन्त्र का जाप करती है; और अपने सतीत्व के प्रभाव से जयकुमार की रक्षा करती है।' तीर्थाटन के समय पर्वत की शोभा देखते हुए सुलोचना पति से अलग हो जाती है। इसी समय एक देवी विरहिणी स्त्री के रूप में जयकुमार के पास पाती है। जयकुमार जब उसके संग की प्रार्थना को ठुकरा देते हैं, तब वह उनको लेकर भागती है। उस समय भी सुलोचना किंकर्तव्यविमूढ़ न होकर उस देवी को फटकारती है । फलस्वरूप वह देवी जयकुमार को छोड़कर चली जाती है । ___ इस प्रकार सुलाचना में शील, स्वाभिमान, धर्य, पतिभक्ति मादि सभी श्रेष्ठ गुण मिलते हैं। अपने इन्हीं गुणों के कारण यह अपने पति को प्रसन्न करने में समर्थ है। प्रकोति-- ___ यह चक्रवर्ती भरत का पुत्र है। यमी काव्य के नायक जयकुमार इसके पिता के ही सेनापति हैं, किन्तु प्रेम के क्षेत्र में यह उनका प्रतिद्वन्द्वो है। ईर्ष्यालु सलोचना स्वयंवर में प्रना राजारों के समान ही अर्ककीर्ति को भी निराश होना पड़ता है । अर्क कीति का एक सेक दुर्मर्षण जयकुमार के उत्कर्ष को सहने में असमर्थ होकर अपने स्वामी को जपामार और राजा प्रकम्पन के विरुद्ध भड़काता है । तब यह सेवक के कहे वनरों को दिना विवारे नान लेता है; और काशीराज को मारकर उनको पुत्री सुलोचना को लाने का प्रादेश दे देता है। इस समय इसको जयकुमार के सेनापतित्व से भी ईर्ष्या हो जाती है । प्रविनीत काशीराज एवं जयकुमार के विरुद्ध एवं निराशा और क्रोध से युक्त वचन सुनकर इसका अनवद्यमति नाम का मंत्री इसे समझाता है और काशी और जयकुमार से भरत चक्रवर्ती के स्नेह-सम्बन्धों की बात पर विचार करने का उपदेश १. जयोदय, २०४८-६५ २. वही, २४।१०५-१४६ ३. वही, ७।२२
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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