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महाकवि ज्ञानसागर की मात्रयोजना
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सकता है। वीरता--जयकुमार अप्रतिम योद्धा है । एक चक्रवर्ती के सेनापति में जो गुण होने चाहिएं, वे सब इन में हैं । जयकुमार के ही कारण भरत को सदैव विजय की प्राप्ति हुई है । अपने भी सभी त्रुनों को इन्होंने समाप्त कर दिया है । इनकी वीरता का उदाहरण देखिये--सुलोचना ने स्वयंवर में जयकुमार का चुनाव किया; भोर इनके गले में जयमाला डाल दी . प्रतएव जयकार के साथ सुलोचना का विवाह होना निश्चित हो गया। इसी बोच जयकार का एक प्रतिद्वन्द्वी-मर्ककीति अपने एक सेवक के कहने पर जपक मार से युद्ध के लिए तैयार हो जाता है । ऐसे समय में जयकुमार महाराज प्रकम्पन को धैर्य बंधा कर युद्ध करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। यह अपनी सेना सहित अर्ककीर्ति के साथ बड़ो वीरता से लड़ते हैं मोर विजय भी प्राप्त कर लेते हैं । परम जैन धापिक -
जयकुमार को जिनेन्द्र भगवान पर पूर्ण प्रास्था है । प्रतिदिन नियमपूर्वक यह सन्ध्योपासना के साथ जिन भगवान की पूजा करते हैं। यह प्रत्येक ऋषि का स्वागत करते हैं और उनके द्वारा बताई गई धर्म की सभी बातों को ध्यानपूर्वक सुनते भी हैं । अर्ककोति को पराजित करने के बाद भी यह प्रायश्चित्त रूप में जिनदेव की स्तुति करते हैं ।५ जब यह ग्रोर पुलोचना दोनों अपने पूर्वजन्मों का स्मरण करते हैं, तब जयकुमार अपना राम राज्य पर भाई विजय को सौंप कर तीर्थाटन के लिए निकल पड़ते है । हिमालय पर्वत में स्थित एक देव लय में जाकर यह जिनदेव की स्तुति करते हैं ६ जब जय कुमार के हृदय में रग्य उत्पन्न होता है, उस समय यह जैन धर्म दीर्थ : र ऋषभदेव के पास चले जाते हैं और उनसे दीक्षा की याचना करते हैं । इमरे पश्चात् तपस्या करते हैं।" प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं सौन्दयं -...
जयकुमार प्रभावशाली व्यक्तित्व और सौन्दयं के स्वामी हैं। इन्होंने कच्छप
१. महासत्त्वोऽतिगम्भीरः क्षमावानविकत्थनः ।। स्थिरो निगूढाहारो धीरोदात्तो दृढव्रतः।
_ -- दशरूपक, २।४ का उत्तरार्ध और ५वीं का पूर्वाधं । २. जयोदय, ७।८३-११५, ८।१-८४ ३. वही, १६वा सर्ग ४. वही, १८८-११२, २।१-१४१ ५. वही, ८८६-६५ ६. वही, २४१५८-८५ ७. वही, २६।३८-१०७, २७वा सर्ग, २७.१.६६