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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक अध्ययन पात्र-जैसे वधिक, चाण्डाल प्रादि । कवि ने अपने कायों में तीनों ही श्रेणी के पात्रों को प्रयुक्त किया है । कवि के काव्यों में इन पात्रों की संख्या २२ है। मानवेतर वर्ग इस वर्ग में वे पात्र पाते हैं, जिन : पृथ्वी से सम्बन्ध नहीं होता; और यदि होता भी है तो बहुत ही कम । ये पृथ्वीलोक के अतिरिक्त अन्य लोकों में भी विचरते रहते हैं। इस वर्ग के पात्रों के भी दो विभाग किये गये हैं, देव वर्ग मोर व्यन्तर-वर्ग। (क) देव वर्ग स्वर्ग लोक में रहने वाले, प्रलौकिक गुणों और समादि से युक्त पात्र इस वर्ग के अन्तर्गत आते हैं : कवि के काव्य में इस वर्ग के ४ पात्र प्रयुक्त किये गये हैइन्द्र, देवगण, इन्द्राणी और भी, ह्रो देवियाँ । ये सभी पात्र मनुष्य लोक के प्राणियों का कल्याण करने के कारण सत्पात्रों को कोटि में प्राते हैं। (ख) व्यन्तर वर्ग इस वर्ग में पिशाच पोर यक्ष योनि के पात्र पाते हैं. जिनमें मनुष्यों में प्राप्त होने वाली सामान्य विशेषतानों का प्रभाव होता है ।' प्राय: इस वर्ग के पात्र मायाचारी होते हैं और अपनी माया से जनसामान्य को कष्ट देते हैं । श्री ज्ञानसागर के काव्यों में इन कुटिल पात्रों की संख्या ४ है । उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हमारे पालोच्य कवि श्री ज्ञानसागर ने समाज में प्राप्य प्रत्येक प्रमुख वर्ग और प्रकृति वाले पात्रों को अपने काव्यों में उपस्थित किया है । प्रब उन पात्रों में से कतिपय ऐसे पात्रों का चरित्र-चित्रण प्रस्तुत है, जिन्होंने काव्यों के कथानकों को प्रमुख रूप से प्रभावित किया है । जयोदय के पात्र जयकुमार यह सम्राट भरत के सेनापति हैं। हस्तिनापुर का शासन इनके ही अधीन है । जयकुमार के पिता का नाम है सोमदेव : काशीनरेश महाराज प्रकम्पन की पुत्री सुलोचना इनकी पत्नी है। जयकुमार 'जयोदय' नामक काव्य के नायक हैं । काव्यशास्त्रीय दृष्टि से इनको धीरोदात्त नायक की. श्रेणी में रखा जा १. व्यन्तरः (विशिष्टः अन्तरो यस्य-प्रा. ब.)। पिशाच, यक्ष प्रादि एक प्रकार का अतिप्राकृतिक प्राणी। -वामन शिवराम प्राप्टे का संस्कृत-हिन्दी-कोश, (प्रकाशक-मोतीलाल बनारसीदास) पृष्ठ संख्या ६८५ २. जयोदय, ६१
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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