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महाकवि ज्ञानसागर की पात्रयोजना
१५५ ___ कविवर श्री ज्ञानसागर ने अपने काव्यों में ऋषिवर्ग के चौदह (पुरुष और स्त्री) पात्रों का उल्लेख किया है। उनके ये पात्र व्यक्तिगत परिचय से हीन होकर हमारे सामने माते हैं। इसमें इनको ऐतिहासिकता एवं वास्तविकता सन्दिग्प हो पाती है। प्रतः ये हमें काल्पनिक पात्र से प्रतीत होने लगते हैं। किन्तु ये पात्र हमारे लिए वन्य भी हो जाते हैं। क्योंकि जब पुरुष मुनि बनता है, तब सांसारिक भोग-विलास का परित्याग करके अपने सांसारिक नाम का भी त्याग कर देता है। उसके लिए मात्मा का कोई महत्त्व नहीं रहता; परमात्मा ही उसके लिए सर्वस्व होता है। ऐसी स्थिति में जनता को प्रबुद्ध करना ही उसका नाम पोर काम होता है। फिर समाज उनके नाम को नहीं, काम को पूजता है। समाज को जागरित करने वाली ऐसी ही दिव्यविभूतियों का वर्णन कवि ने ऋषिवर्ग के पात्रों के रूप में किया है। (ख) राववर्ग
कवि द्वारा प्रयुक्त राजवर्ग के पात्रों से हमारा तात्पर्य उन पात्रों से है, जो किसी देश के राजा हैं, राजा की स्त्रियां हैं, राजकुमार हैं और राजकुमारियां हैं। मतः राजवर्ग के पात्रों से तात्पर्य है राजपरिवार पात्र । कवि ने राजवर्ग के २१ पात्रों को प्रयुक्त किया है। इस वर्ग के पात्र मच्छी से अच्छी प्रकृति वाले हैं और दुष्ट से दुष्ट प्रकृति वाले भी । जहाँ मुनि अपनी दिव्य वाणी से जनता पर शासन करते हैं, वहां इस वर्ग के पात्र अपने भुजबल से जनता पर शासन करते हैं। प्रतः वरीयता की रष्टि से इनका स्थान द्वितीय है। (ग) राजसेवक वर्ग
इस वर्ग में राजवर्ग की सेवा करने वाले पात्र पाते हैं। इनको तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है । मंत्री, सभासर इत्यादि राजकर्मचारी प्रथम श्रेणी के पात्र हैं । द्वारपाल, दूत इत्यादि द्वितीय श्रेणी के पात्र हैं। बषिक, चाण्डाल इत्यादि तृतीय श्रेणी के पात्र हैं। हम देखते हैं कि हमारे पालोच्य महाकवि श्री ज्ञानसागर ने इन तीनों ही श्रेणियों के पात्रों को काव्यों में प्रावश्यकतानुसार प्रयुक्त किया है। इन पात्रों की कुल संख्या ११ है। इस संख्या में पुरुष पात्र एवं स्त्रीपाप-दोनों ही सम्मिलित है। (घ) प्रजावर्ग
उपर्युक्त पात्रों के अतिरिक्त नागरिक पात्र 'प्रजावर्ग' के अन्तर्गत पाते हैं। इन पात्रों को राजकीय कर्मचारियों के अधीन रहना पड़ता है, इसलिए वरीयता की दृष्टि से इनका चतुर्थ स्थान है । भाषिक दृष्टि से इन पात्रों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है, उच्चवर्गीय पात्र-जैसे सेठ वृषभदास, सेठ गुणपाल, सेठ सागरपत्त मावि मध्यवर्गीय पात्र जैसे, गोविन्द ग्वाला, कपिल पादि; और निम्नवर्गीय